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जन्मसमुद्रः
मिथुन के नवमांश में रहा हा बुध यदि द्विस्वभाव राशि के नवमांशों में रहे हुए लग्न और सब ग्रहों को देखता हो तो गर्भ में एक कन्या और दो पुत्र कहना। एवं कन्या के नवमांश में रहा हुमा बुध यदि द्विस्वभाव राशि के नवमांश में रहे हए लग्न और सब ग्रहों को देखता हो तो दो पुत्री और एक पुत्र कहना ॥१०॥
अथ योगान्तरमाह--
नृयुग्गो वा (च) नृयुग्मास्त्रांशगांश्च सुतत्रयम् ।
स्त्र्यंशस्थो मीनकन्यांशगतांस्तांश्चाङ्गजात्रयो ॥१६॥ वा अथवा च शब्दाद् बुधो नृयुग्गो नृयुजं मिथुनं गच्छति स नृयुग्गो मिथुनांशस्थः सन् तान् ग्रहोदयान् नृयुग्मास्त्रांशगान् नृयुग्मं मिथुनं, अस्त्रं धनुरनयोरंशं गच्छन्तिस्म तान् मिथुनधनुरंशगान् यदि पश्येत् तदा सुतत्रयं वाच्यम् । च पुनः स्त्र्यंशस्थः कन्यांशस्थो यदि बुधस्तान् मीनकन्यांशगतान् ग्रहोदयान् यदि पश्येत् तदाङ्गजात्रयी पुत्री त्रयी इति वाच्यम् । १६ ।।
मिथुन के नवमांश में रहा हुआ बुध यदि मिथुन और धन के नवमांश में रहे हुए लग्न और सब ग्रहों को देखता हो तो गर्भ में तीन पुत्र कहना, तथा कन्या के नवमांश में रहा हुआ बुब यदि मीन और कन्या के नवमांश में रहे हुए लग्न और सब ग्रहों को देखता हो तो गर्भ में तीन कन्या कहना ॥१६॥
अथापत्याधिकसंभवयोगानाह
चापस्यान्त्येऽङ्गगे वांशे बलिज्ञार्कोक्षिते ग्रहैः ।
चान्यग्रहैस्तु कोशस्थाः पञ्चसप्तदशाङ्गजाः ॥२०॥ चापस्य धन्विनोऽन्त्येऽशे नवमांशेऽङ्गगे लग्नगते यत्र तत्र राशौ च सति बलिज्ञार्कीक्षिते बली यो ज्ञो बुधोऽथवार्किः शनि. तेनेक्षिते दृष्टे च शब्दादन्यैर्ग्रहैश्च रविसोमभौमगुरुशुक्रैश्चापस्यान्त्येऽशे धनुरंशगतैर्यत्र तत्र राशिगैलिभिः कोशस्था जरायुवेष्टिता अङ्गजाः पुत्राः पञ्च सप्त दश वा गर्भे भवन्तीत्येकायोगः। वा अथवा चापस्य धन्विनोऽत्येशे धनुर्धरनवांशे चापस्याङ्गगे लग्नगते सति कोऽर्थः धनुर्लग्ने धनुर्नवांशे च बलिज्ञार्कीक्षिते सति पुनरन्यैर्ग्रहैरेवं विधैः पूर्वोक्त संख्याप्रमाणाः पुत्रा वाच्याः ।।२०।।
यदि लग्न धन राशि के अन्त्य नवांश में हो और उसको बुध या शनि बलवान् होकर देखते हों, तथा अन्य ग्रह किसी भी राशि में रहे हुए रवि, चन्द्रमा, मंगल, गुरु और शुक्र ये बलवान् होकर धन राशि के अन्तिम नवमांश में हों तो गर्भ में जरायु से वेष्टित पांच सात या दस संतान होना कहना । अथवा बुध या शनि, धनु राशि के अंत्य नवमांश में
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