________________
जन्मसमुद्रः
च्युतो नीचराशिमप्राप्य स्थितो भवति, तदादिशब्दात् तत्रासौ मध्यमो भवेदिति । अथ तत्र नीचे परमनीचे वा प्रादिशब्दादधमो नीचो भृत्यो दासो वाऽभूदयमिति वाच्यम् । एतत् पूर्वोक्त सर्वमाधानलग्नात् प्रश्नलग्नाद् भविष्यमेव वाच्यम् । जन्मलग्ने दृष्टे सति अयमीदृशोऽस्ति भविष्यतीति ज्ञेयम् ।।३०।।
इति नरचन्द्रोपाध्यायकृतायां जन्मसमुद्रविवृतौ वृत्तिबेड़ायाभिधायां गर्भसंभवादिलक्षणं प्रथमः कल्लोलः ।।१।।
सूर्य या चन्द्रमा बलवान् होकर जिस द्रष्कारण में हो, उस द्रष्काण के स्वामी के अनुसार पितलोक, तिर्यगलोक, अधोलोक या स्वर्गलोक से वह बालक पाया हुया कहना चाहिये। जैसे-द्रेष्काण के स्वामी शुक्र या चन्द्रमा बलवान् हो तो वह बालक पितृलोक से आया हुआ है । बलवान् सूर्य या मंगल उस द्रेष्काण का स्वामी हो तो वह बालक मनुष्यलोक से आया हुअा कहना । बुध और शनि इनमें से जो बलवान् होकर उस द्रेष्काण का स्वामी हो तो वह बालक नरकलोक से आया हुआ है। उस द्रष्कारण का स्वामी यदि बलवान् गुरु हो तो वह बालक स्वर्गलोक से पाया हुआ कहना। जन्म लेने वाला बालक का जीव जिस लोक से आया है, वहां किस स्थिति में था यह बतलाते हैं कि-यदि द्रेष्काण का स्वामी उच्च का या परमोच्च का हो तो वह जीव उस लोक में प्रधान जीवों में था। यदि मध्यम हो तो मध्यम श्रेणी का और नीच या परमनीच का हो तो नीच दास सेवक का जीव था। इसका जाति रूप वयः और वर्ण आदि ग्रह के अनुसार कहना। इस अध्ययन में जो योग बतलाये हैं, उनका फल सब प्राधान लग्न से या प्रश्न लग्न से कहना चाहिये, इसी प्रकार जन्म लग्न से भी कह सकते हैं ॥३०॥
नरचंद्रोपाध्याय विरचित जन्मसमुद्रका गर्भसंभवादि लक्षणनामका प्रथम कल्लोल समाप्त।
"Aho Shrutgyanam"