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- जन्मसमुद्रः
मथ वामनयोगमाह
मृगान्त्यांशेऽङ्गगेऽर्केन्दुशनीक्ष्ये वामनो मतः।
एतेऽप्युक्तफला योगा यदि सौम्यैनं वीक्षिताः ॥२६॥ मृगो मकरस्तस्यान्त्ये नवमेंऽशे अङ्गगे लग्नगे अर्केन्दुशनीक्ष्ये सति वामनो मतः स्मृतः । एते 'कोणस्थे ज्ञे' इत्यादयो ये योगा उक्तास्ते तादृशा एव भवन्ति, परं यदि सोम्यैर्न दृष्टा योगाः । अपि शब्दात् पुनर्यदि शुभदृष्टा स्तदाऽल्पफलाः ॥२६॥
यदि मकर लग्न अपने अन्त्य नवमांश में हो, उसको सूर्य, चन्द्र और शनि देखते हों तो वह बालक वामन होता है। उपरोक्त श्लोक २१ से जो-जो योग बतलाये हैं उन पर यदि शुभग्रहों की दृष्टि न हो तो उसी प्रकार फल देने वाले हैं, परन्तु शुभ ग्रहों की दृष्टि बहुत अल्प फल देते हैं ॥२६॥
मथ सम्भूतगर्भमासज्ञानमाह
लग्नांशकाः स्युर्यावन्तस्तावन्तो गर्भमासकाः।
सुताद्वाङ्गाद् बली शुक्रो यावद् गेहेऽथ तन्मिताः ॥२७।। . सम्भूतगर्भमासज्ञानं निजप्रश्नप्रकाशश्लोकेनोक्तम् ।
प्रश्न लग्न के जितने नवमांश गये हों, उतने ही गर्भ के मास हुए, ऐसा समझना। लग्न से या पंचम स्थान से जितने स्थान पर बलवान शुक्र बैठा हो, उतनी संख्या तुल्य गर्भ के मास जानना ॥२७॥
अथ प्रसवकालज्ञानमाह -
यतमे द्वादशांशेऽब्जः सूतिस्तत्संख्यमे विधौ।
यतमा धुरात्रिलग्नांशास्तत्काले युनिशोर्भवेत् ।।२८॥ __ अब्जस्तात्कालिकश्चन्द्रो यतमे यत्संख्ये द्वादशांशेऽस्ति, तत्संरव्यभे तत्संख्यो यो मेषादिगणनया यद्भ राशिस्तत्र गते विधौ चन्द्र दशमे मासे सूतिः प्रसवः । अथ धुरात्रिलग्नांशो दिवारात्रिसंज्ञो यो लग्नस्यांशो यतमो यावत्कालो भवेत्, दिननिशोस्तावति काले गते जन्म भविष्यतीति वाच्यम् । दिवानिशोर्गतकालबुध्वा प्रसवकाले लग्नहोरादिषड्वर्ग कथनीयः । सिंहकन्यातुलावृश्चिककुम्भमीनराशयो दिवा सञ्ज्ञाः अन्ये राशयो रात्रिसंज्ञा ज्ञेयाः ।।२८।।
यदि तत्कालिक स्पष्ट चन्द्रमा जिस राशि के द्वादशांश में हो, उस द्वादशांग को राशि में चन्द्रमा पाने से दसवें मास में बालक का जन्म कहना। लग्न जिस नवमांश में हो वह दिनबलि है या रात्रिबलि इसका विचार करके जो बलवान् हो उसके अनुसार लग्न के
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