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जन्मसमुद्रः
चन्द्रमा हो ६, अथवा चन्द्रमा को सूर्य देखता न हो ७, इन सात योगों में से कोई योग हो तो बालक का जन्म अंधकार में कहना। परन्तु उक्त योगों में से कोई योग रहने पर भी यदि चन्द्रमा को सूर्य देखता हो तो प्रकाश में जन्म कहना ॥११॥ अथ योगान्तरमाह
. लग्नेन्दू एकगैदृष्टौ सजने विजनेऽदृशौ ।
नीचेऽङ्गगेऽम्बुगे चेन्दौ नीचैस्त्र्यायैस्तु भूगतः ॥१२॥ ग्रहैरेकगैरेकस्थानगतै बहुवचनात् त्रिचतुः प्रभृतिभिर्लग्नेन्दू यदि दृष्टौ तदा सजने जनाकुले स्थाने जन्म । वाथवेन्दौ चन्द्रेऽङ्गगे लग्नगे नीचे वृश्चिकस्थे वा सति, वाथवा सिंहलग्ने सति नोचे वृश्चिकस्थे वा सति, अम्बुगे चतुर्थस्थे चन्द्र भूगतौ भूमिगतः प्रसवः । अथवा नीचैग्रहैस्त्र्याय॑स्त्रिप्रभृतिभिर्भूमिसुप्ताया जातः ॥१२॥ - एक स्थान में तीन चार ग्रह रहे हों, ये यदि लग्न और चंद्रमा को देखते हों तो मनुष्यवाले स्थान में जन्म कहना और लग्न और चंद्रमा को देखते न हों तो निर्जन स्थान में जन्म कहना। अथवा चंद्रमा लग्न में या वृश्चिक राशि में हो, अथवा सिंह लग्न में हो, अथवा वृश्चिक राशि का चंद्रमा चौथे स्थान में हो तो भूमि पर जन्म कहना। अथवा तीन या अधिक ग्रह नीच राशि के हों तो भूमि पर जन्म कहना ॥१२॥
अथोद्योतसंभवे प्रसवस्थानप्रदेशज्ञानमाह
आरेक्ष्येऽर्के बले दीपः कृतस्तार्णोऽबलैः परैः ।
स्थानेऽङ्गांशसमे स स्याच्चरे मार्गे स्थिरे गृहे ॥१३॥ अर्के आरेक्ष्ये कुजदृष्टे बले बलिष्ठे सति दीपः कृतः कथ्यः । परमपरै रविकुजरहितैरबलैनिर्बलैः कृत्वा किंविशिष्टस्तार्णः तृणानामयं तार्णः, तृणानि प्रज्वाल्य दीपः कृतः इत्यर्थः। स प्रसवः क्वस्थानेऽङ्गांशसमे स्यात् ? परं पूर्वोक्तयोगाभावे सति अङ्गच अंशश्च अङ्गाशौ तयोर्मध्याद् यस्य राशिर्बली तस्य राशेः प्राणी यत्र सञ्चरति, तस्य समे सदृशे स्थाने प्रसवोऽभूत् । यदि स चरस्थिर द्विस्वभावानां राशिस्वांशगतो भवेत् तदा स्वमन्दिरे । चरे चरलग्ने चरांशे गृहाच्चलितस्य मार्गे जन्म। स्थिरलग्ने स्थिरांशे वा गृहे जातः । अर्थान्तराच्चरलग्नं चरांशो वा तस्य लग्नांशस्य राशिरूपो यः प्राणी स यत्र सञ्चरति तत्र जन्म वेद्यम् ।।१३॥
बलवान् सूर्य को मंगल देखता हो तो जन्म समय दीपक था। परन्तु अन्य निर्बल ग्रह बलवान् सूर्य को देखते हों तो तण आदि का दीपक था। लग्न का नवमांश यदि चर राशि का हो तो रास्ते में जन्म, स्थिर राशि का हो तो अपने घर में और द्विस्वभाव राशि का
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