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अनित्य है।
वैराग्य - साधक को लौकिक तथा पारलौकिक भोगों से विरक्त होना चाहिए। आत्म-प्रेम के लिए अन्य वस्तुओं के प्रेम को त्याग देना चाहिए ।
षट् सम्पत्तियाँ - शम, दम, उपरिति, तितिक्षा, श्रद्धा और समाधान इन षट् सम्पत्तियों का पालन करना चाहिए।
मुमुक्षुत्व साधक को मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने संकल्प को दृढ़ बनाना
चाहिए ।
इस प्रकार बराबर साधनारत रहने से जीव के विभिन्न कर्मों के संस्कार नष्ट हो जाते हैं और उसकी निष्ठा ब्रह्म में बलवती हो जाती है। साथ ही ब्रह्म और जीव एक हो जाते हैं। जब जीव और ब्रह्म एक हो जाते हैं, तब जीव के समस्त अहंकारादि दोष नष्ट हो जाते हैं। माया के कारण जीव आत्मस्वभाव को भूला रहता है। ज्ञान की प्राप्ति होते ही उसे आत्मस्वभाव की प्राप्ति हो जाती है और ब्रह्म के साथ उसका तादात्म्य हो जाता है। यही मोक्ष है। विवेकचूड़ामणि में कहा भी गया है कि श्रद्धा, ध्यान और योग मुक्ति के कारण हैं और इनसे ही देहबन्धन को परित्राण मिलता है । ८९
सन्दर्भ
जैन एवं बौद्ध परम्परा में योग- इन दोनों परम्पराओं में मान्य योग-साधना का विस्तृत विवेचन अगले अध्याय में किया जायेगा ।
२.
३.
४.
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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
५.
६.
७.
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Mohan-Jodaro and the Indus Civilization, p. 52-53. Ibid-p.53
History of Ancient India, R. S. Tripathi, p. 25.
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The distinction between Aryan and Un Aryan or which so much has been built, seems on the mass of the evidence in indicate a cultural rather than racid diggerence. On the Veda - p. 24 Pre-historic Regvedic Culture of the pre-historic Indus, P. 38 हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः । महाभारत, १२ / ३४९/६५ सधा नो योग आ भुवत् । ऋग्वेद, १/५/३
स धीनां योगमिन्वति । - वही, १/१८/७
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