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आत्मनिवेदन
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मन्दिर' इस नामसे प्रस्तुत पुस्तकके प्रकाशनका भार मैंने स्वयं वहन किया है। यदि अनुकूलता रही और उचित सहयोग मिल सका तो कविवर बनारसीदासजी, कविवर दौलतरामजी, कविवर भूघरदासजी, कविवर भैया भगवतीदासजी, कविवर भागचंदजी आदि प्रौढ़ अनुभवी विद्वानोंने अध्यात्मके रहस्यको प्रकाशमें लानेवाला जो भी साहित्य लिखा है उसे सकलित करके योग्य सम्पादन और टिप्पण आदिके साथ इस नामसे प्रकाशित करनेका मेरा विचार है। तथा इसी प्रकारका जो भी संस्कृत प्राकृत साहित्य होगा उसे भी इसी नामके अन्तर्गत यथावसर प्रकाशित किया जागगा । इतना अवश्य है कि यह स्वयं कोई सस्था नहीं है और न इसे सस्थाका रूप देनेका मेरा विचार है, अतएव जिन जिन महानुभावोके सहयोग से यह साहित्य प्रकाशित होगा वह प्रकाशित होनेके बाद उनके स्वाधीन करता जाऊँगा । अध्यात्म जैनधर्मका प्राण है और ऐसे साहित्यसे उसके रहस्यके प्रकाशमें आने में सहायता मिलती है तथा साहित्यका यह प्रमुख अंग पूरा होना चाहिए, मात्र इसी पुनीत अभिप्रायसे मेरी इसे व्यवस्थित सम्पादन सशोधनके साथ प्रकाशित करनेकी भावना है, अन्य कोई हेतु नहीं है । तथा इसी भावनावश यह पुस्तक अति स्वल्प मूल्यमे सर्व-साधारणके लिए सुलभ रहे, इसलिए मैने इसका मूल्य मात्र १) रखा है। इससे लागतमें जो भी कमी होगी उसकी भविष्यमे पूर्ति हो जानेको आशा है ।
इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तकका प्रारम्भसे लेकर उसके प्रकाशित होने तकका यह सक्षिप्त इतिहास है । इसमें पूर्व में उल्लिखित विद्वान्, त्यागो तथा अन्य प्रगट और अप्रगट जिन-जिन पुण्य पुरुषोंका हाथ है उन सबका मैं आभारी ही नही कृतज्ञ भी हूँ । अब तो यह पुस्तक प्रकाशित होकर सबके समक्ष आ ही रही है । हमें भरोसा है कि मार्गप्रभावनाके लिए प्रवचन भक्ति से प्रेरित होकर किये गये इस मगल कायमें अब तक हमें सबका जो उत्साहपूर्ण सहयोग मिला है, उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि ही होगी । मोक्षमार्ग में जो मेरी अनन्य अभिरुचि है यह उसीका फल है । निश्चयसे इसमें मेरा कर्तृत्व नामको भी नही है । इसलिए उसी अभिप्रायसे तत्त्वजिज्ञासु इसे स्वीकार करें ।
२/ ३८ भदैनी,
वाराणसी
फूलचन्द्र सिद्धांतशास्त्री
२०-८-६०