Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Tiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 13
________________ (८) शतरंज के मोहरों को हाथी, घोडा, मंत्री आदि कहा जाता है। इसके लिए जैनदर्शन निक्षेप का सिद्धांत उपस्थित करता है । यह शब्द क्षिप् धातु से बना है, जिसका अर्थ फेंकना है । अर्थ आदि का पर्यालोचन किए बिना शब्द को वस्तु पर फेंकना 'निक्षेप' है । नय में व्यवहार की प्रधानता होती है, वह न्यूनाधिक मात्रा में अर्थलक्ष्यी होता है, किंतु निक्षेप में अर्थ का ध्यान नहीं रहता । तृतीय द्रव्यनिक्षेप भूत अथवा भावी अवस्थाओं को लेकर चलता है और चतुर्थ भावनिक्षेप वास्तविकता को निक्षेप का सिद्धांत भी जैनदर्शन की मौलिक देन है | आगम साहित्य में व्याख्या की परिपाटी में इन्हीं निक्षेपों का आश्रय लिया जाता है। उदाहरण के रूप में ज्ञान का प्रतिपादन करते समय पहले नाम, स्थापना और द्रव्य के रूप में इसका विवेचन किया जायगा और इसके पश्चात् भावज्ञान के रूप में असली वस्तु का 1 यशोविजय से पहले आचार्यों ने मुख्यतया ज्ञान एवं प्रमाण का विवेचन किया है। किसी-किसी ने नय पर भी लिखा है, किंतु निक्षेप को तर्कशास्त्र में सम्मिलित करना यशोविजय की मौलिक देन है । इन्द्रचंद्र शास्त्री

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