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प्रमाणपरिच्छेदः
पाटलिपुत्रकादित्वेन, न कान्यकुब्जादित्वेन । कालतः शशिरादित्वेन, न वासन्तिकादित्वेन । भावतः श्यामादित्वेन, न रक्तादित्वेनेति । एवं स्यानास्त्येव सर्वमिति प्राधान्येन निषेधकल्पनया द्वितीयः । न चासत्त्वं काल्पनिकम्; सत्त्ववत् तस्य स्वातन्त्र्येणानुभवात्, अन्यथा विपक्षासत्त्वस्य तात्त्विकस्याभावेन हेतोस्त्ररूप्यव्याघातप्रसंगात् । स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येवेति प्राधान्येन क्रमिकविधिनिषेधकल्पनया तृतीयः। स्यादवक्तव्यमेवेति युगपत्प्राधान्येन विधिनिषेधकल्पनया चतुर्थः, एकेन पदेन युगपदुभयोर्वक्तुमशक्यत्वात् । शतृशानशौ सदित्यादौ सांकेतिकपदेनापि क्रमेणार्थद्वयबोधनात् । अन्यतरत्वादिना कथञ्चिदुभयबोधनेऽपि प्रातिस्विकरूपेणकपदादुभयबोधस्य ब्रह्मणापि दुरुपपादत्वात् । स्यादस्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति विधिकल्पनया युगपद्विधिनिषेधकल्पनया च पञ्चमः । स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति निषेधकल्पनया युगपद्विधिनिषेधकल्पनया च षष्ठः । स्यादस्त्येव स्यन्नास्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति विधिनिषेधकल्पनया युगपद्विधिनिषेधकल्पनया च सप्तम इति। क्षेत्रसे पाटलिपुत्र में है, कान्यकुब्जमें नहीं । कालसे शिशिर ऋतुमें है, वसन्तमें नहीं। भावसे श्याम है, रक्त नहीं। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वस्तुमें स्वद्रव्य-क्षेत्रका भावसे अस्तित्व होता ही है। २-कथंचित् सब पदार्थ नहीं हैं, इस प्रकार प्रधान रूपसे निषेधकी कल्पनासे द्वितीय भंग होता है । यहाँ 'कथंचित्' शब्दसे परद्रव्य-क्षेत्र-कालभाव समझना चाहिए, अर्थात् परद्रव्यादिसे सब वस्तुएँ असत् हैं। कोई असत्त्वको काल्पनिक मानते हैं सो ठीक नहीं है क्योंकि सत्त्वकी भाँति असत्त्व भी स्वतंत्र रूपसे अनुभवमें आता है । यदि असत्त्वको काल्पनिक माना जाय तो 'विपक्षासत्त्व' (हेतुका विपक्ष-साध्याभावमें न रहना) भी वास्तविक न होगा। ऐसी स्थितिमें हेतुको त्रिरूपतामें गड़बड़ हो जाएगी। ३-कथंचित् सब पदार्थ हैं, कथंचित् नहीं हैं, इस प्रकार प्रधान रूपसे क्रमशः विधि और निषेधकी कल्पनासे तीसरा भंग होता है। ४-कथंचित् सब पदार्थ अवक्तव्य हैं, इस प्रकार एक साथ विधि और निषेधकी कल्पनासे चौथा भंग होता है। चौथे भंगको अवक्तव्य कहनेका कारण यह है कि किसी भी एक पदके द्वारा एक साथ अस्तित्व और नास्तित्व दोनोंका कथन करना शक्य नहीं है। शतृ और शानश् इन दोनों प्रत्ययों के लिए जो 'सत्' पद संकेतित किया गया है, वह भी क्रमसे ही दोनों प्रत्ययों का बोध कराता है-युगपद् नहीं। अन्यतरत्व आदिके द्वारा किसी प्रकार दोनोंका बोध हो भी जाय तो भी अलग-अलग नियत रूपसे एक पदसे दोनोंका बोध तो ब्रह्मा भी नहीं करा सकता। ५-कथंचित् सब पदार्थ हैं और कथंचित् अवक्तव्य हैं, इस प्रकार विधिको विवक्षासे तथा एक साथ विधि-निषेधकी विवक्षासे पाँचवाँ भंग होता है। ६-कथंचित् सब पदार्थ नहीं हैं और कथंचित् अवक्तव्य हैं, इस प्रकार निषेध की तथा एक साथ विधि-निषेध की विवक्षासे छठा भंग होता है । ७-कथंचित् सब पदार्थ हैं, कथंचित् नहीं हैं और कथंचित् अवक्तव्य हैं, एवं क्रमसे विधि-निषेध और एक साथ विधि-निषेधकी कल्पनासे सातवाँ भंग होता है।