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जैन तर्क भाषा
__सेयं सप्तभंगी प्रतिभंग (भंग) सकलादेशस्वभावा विकलादेशस्वभावाच । तत्र प्रमाणप्रतिपन्नानन्तधर्मात्मकवस्तुनः कालादिभिरभेदवृत्तिप्राधान्यादभेदोपचाराद्वा योगपद्येन प्रतिपादकं वचः सकलादेशः । नयविषयीकृतस्य वस्तुधर्मस्य भेदवृत्तिप्राधान्याभेदोपचाराद्वा क्रमेणाभिधायकं वाक्यं विकलादेशः। ननु कः क्रमः, किं वा योगपद्यम् ? उच्यते-यदास्तित्वादिधर्माणां कालादिभिर्भेदविवक्षा तदैकशब्दस्यानेकार्थप्रत्यायने शक्त्यभावात् क्रमः। यदा तु तेषामेव धर्माणां कालादिभिरभेदेन वृत्तमात्मरूपमुच्यते तदैकेनापि शब्देनकधर्मप्रत्यायनमुखेन तदात्मकतामापन्नस्यानेकाशेषरूपस्य वस्तुनः प्रतिपादनसम्भवाद्योगपद्यम् ।
के पुनः कालादयः ? । उच्यते-काल आत्मरूपमर्थः सम्बन्ध उपकारः गुणिदेश: संसर्गः शब्द इत्यष्टौ । तत्र स्याज्जीवादि वस्त्वस्त्येवेत्यत्र यत्कालमस्तित्वं त्वत् (तत्)
___ यह सप्तभंगी, प्रत्येक भंगमें दो प्रकारकी है-सकलादेश स्वभाववाली और विकलादेश स्वभाववाली । प्रमाणसे सिद्ध अनन्त धर्मोंवाली वस्तुको, काल आदिके द्वारा अभेदकी प्रधानतासे अभेदका उपचार करके युगपद्-एक साथ प्रतिपादन करनेवाला वचन सकलादेश कहलाता है तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वस्तुमें अनन्त धर्म हैं, अतएव उसका पूर्ण रूपसे प्रतिपादन करनेके लिए अनन्त शब्दोंका प्रतिपादन करना चाहिए, क्योंकि एक शब्द एक ही धर्मका प्रतिपादन कर सकता है मगर ऐसा करना शक्य नहीं है । हम एक शब्दका प्रयोग करते हैं । वह एक शब्द मुख्य रूपसे एक धर्मका प्रतिपादन करता है और शेष बचे हुए धर्मोको उस एक धर्मसे अभिन्न मान लेते हैं । इस प्रकार एक शब्दसे एक धर्मका प्रतिपादन हुआ और उससे अभिन्न होने के कारण शेष धर्मोंका भी प्रतिपादन हो गया। इस उपायसे एकही शब्द एक साथ अनन्त धर्मोका अर्थात् सम्पूर्ण वस्तुका प्रतिपादक हो जाता है । यही सकलादेश है।
नयके विषयभूत धर्मका, काल आदिके द्वारा भेदकी प्रधानतासे अथवा भेदका उप-. चार करके, क्रमसे प्रतिपादन करनेवाला वाक्य विकलादेश कहलाता है ।
प्रश्न-क्रम और योगपद्यका क्या अर्थ है ? उत्तर-जब अस्तित्व आदि धर्मोकी काल आदिके आधारसे भेदविवक्षा की जाती है, उस समय एक शब्द अनेक अर्थों-धर्मोका प्रतिपादन करने में समर्थ नहीं होता, अतएव क्रम होता है। किन्तु जब उन्हीं धर्मोका कालादिके आधारसे अभिन्न स्वरूप कहा जाता है, तब एक ही शब्द एक धर्मका प्रतिपादन करता हुआ, तद्रूप बने हुए अन्य समस्त धर्मात्मक वस्तुका प्रतिपादन कर देता है, यही योगपद्य कहलाता है।
प्रश्न-जिन काल-आदिके आधार पर एक धर्मका अन्य धर्मोसे अभेद या भेद किया जाता है, वे कौन-कौन हैं ? उत्तर-(१) काल (२) आत्मरूप (३) अर्थ (४) सम्बन्ध (५) उपकार (६) गुणिदेश (७) संसर्ग और (८) शब्द, ये आठ हैं । इन आठोंके आधारसे