Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Tiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 80
________________ नयपरिच्छेदः चेष्टाशून्यं घटाख्यं वस्तु न घटशब्दवाच्यं, घटशब्दप्रवृत्तिनिमित्तभूतकियाशून्यत्वात्, पटवदिति। अर्थाभिधायी शब्दप्रतिक्षेपी अर्थनयाभासः। शब्दाभिधाय्यर्थप्रतिक्षेपी शब्दनयाभासः। अपितमभिदधानोऽनपितं प्रतिक्षिपन्नपितनयाभासः । अनपितमभिदधदर्पितं प्रतिक्षिपन्ननर्पिताभासः । लोकव्यवहारमभ्युपगम्य तत्त्वप्रतिक्षेपी व्यवहाराभासः । तत्त्वमभ्युपगम्य व्यवहारप्रतिक्षेपी निश्चयाभासः। ज्ञानमभ्युपगम्य क्रियाप्रतिक्षेपी ज्ञाननयाभासः । क्रियामभ्युपगम्य ज्ञानप्रतिक्षेपी क्रियानयाभास इति । इति महामहोपाध्यायश्रीकल्याणविजयगणिशिष्यमुख्यपण्डितश्रीलाभविजयगणिशिष्यावतंस पण्डितश्रीजीतविजयगणिसतीर्थ्यपण्डितश्रीनयविजयगणिशिष्येण पण्डितश्रीपद्मविजयगणिसहोदरेण पण्डितयशोविजयगणिना विरचितायां जैनतर्कभाषायां नयपरिच्छेद: सम्पूर्णः । 'घट वस्तु 'घट' शब्दका वाच्य नहीं है, क्योंकि उसमें घट शब्दकी प्रवृत्तिनिमित्त क्रिया नहीं है, जैसे 'पट' शब्दमें। अर्थका अभिधान करनेवाला और शब्दका निषेध करनेवाला दृष्टिकोण अर्थनयाभास है। शब्दका अभिधान करनेवाला और अर्थका निषेध करनेवाला शब्दनयाभास है। अर्पित (विशेष) को स्वीकार करनेवाला और अनर्पित (मामान्य) का निषेध करनेवाला अर्पितनयाभास है। इसी प्रकार अनपितका विधान करनेवाला और अर्पितका निषेध करनेवाला अनर्पितनयाभास है। लोकव्यवहारको अंगीकार करनेवाला और तत्त्वका निषेध करनेवाला व्यवहारनयाभास है। तत्त्वको अंगीकार करके लोकव्यवहारका निषेध करनेवाला निश्चयाभास है । ज्ञानको स्वीकार कर क्रियाका निषेध करनेवाला ज्ञाननयाभास और क्रियाको स्वीकार करके ज्ञानका निषेध करनेवाला क्रियानयाभास है । नय-परिच्छेद सम्पूर्ण।

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