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३. निक्षेपपरिच्छेदः।
(नामादिनिःक्षेपनिरूपणम् । ) नया निरूपिताः। अथ निःक्षेपा निरूप्यन्ते । प्रकरणादिवशेनाप्रतिपत्या(त्या) दिव्यवच्छेदकयथास्थानविनियोगाय शब्दार्थरचनाविशेषा निःक्षेपाः। मंगलादिपदार्थनिःक्षेपानाममंगलादिविनियोगोपपत्तेश्च निःक्षेपाणां फलवत्त्वम्, तदुक्तम्'अप्रस्तुतार्थापाकरणात् प्रस्तुतार्थव्याकरणाच्च निःक्षेपः फलवान्' (लघी ० स्ववि० ७. २) इति । ते च सामान्यतश्चतुर्धा-नामस्थापनाद्रव्यभावभेदात् ।
तत्र प्रकृतार्थनिरपेक्षा नामार्थान्यतरपरिणति मनिःक्षेपः। यथा सङ्केतितमाश्रेणान्यार्थस्थितेनेन्द्रादिशब्देन वाच्यस्य गोपालदारकस्य शक्रादिपर्यायशब्दानभिधेया परिणतिरियमेव वा यथान्यत्रावर्तमानेन यद्दच्छाप्रवृत्तेन डित्थडवित्थादिशब्देन वाच्या।
(निक्षेपप्रकरण ) नयोंका निरूपण किया जा चुका है, अब निक्षेपोंका निरूपण किया जाता है।
शब्द और अर्थकी ऐसी विशेष रचना निक्षेप कहलाती है जिससे प्रकरण आदिके अनु-. सार अप्रतिपत्ति आदिका निवारण होकर यथास्थान विनियोग होता है। उदाहरणार्थ मंगल आदि पदार्थोका निक्षेप करनेसे नाम मंगल आदिका यथावत् विनियोग हो जाता है । यही निक्षेपोंकी सार्थकता है। लघीयस्त्रयमें कहा है निक्षेपकी सार्थकता यही है कि उससे अप्रस्तुत अर्थका निषेध और प्रस्तुत अर्थका निरूपण हो जाता है । सधारणतया निक्षेप चार हैं-(१) नाम (२) स्थापना (३) द्रव्य और (४) भाव।।
प्रकृत अर्थकी अपेक्षा न रखनेवाली नाम या नामवाले पदार्थकी परिणति नाम निक्षेप है । जैसे-संकेत किये हुए, अन्य अर्थ (देवाधिपति) में स्थित इन्द्र आदि शब्दके वाच्य गोपाल पुत्र की शक आदि पर्यायवाचक शब्दों द्वारा अनभिधेय परिणति । जो शब्द अन्य अर्थ में स्थित नहीं हैं ऐसे डित्थ डवित्थ आदि यदृच्छा शब्द संकेतित कर लिये जाते हैं, वे भी नाम कहलाते हैं।
तात्पर्य यह है कि-किसी ने अपने पुत्र का नाम 'इन्द्र' रक्खा, यद्यपि इन्द्र शब्द शक्र का वाचक है मगर पुत्र का नाम इन्द्र रखते समय उसके इस वास्तविक अर्थ पर दृष्टि नहीं रक्खी जाती । जिसका नाम 'इन्द्र' रक्खा गया है वह इन्द्र के पर्याय-वाचक शक पुरन्दर आदि शब्दों द्वारा नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त जो शब्द अन्य अर्थ में नियत नहीं हैं, वे भी जब किसी का अभिधान बन जाते हैं तो नाम कहलाते हैं। नाम और नामवान् पदार्थ में उपचार से अभेद होता है । अतः इन्द्र यह 'नाम' नाम कहलाता है, साथ ही 'इन्द्र' नाम वाला व्यक्ति भी इन्द्र कहलाता है ।