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जैन तर्क भाषा
तदिदमागमप्रमाणं सर्वत्र विधिप्रतिषेधाभ्यां स्वार्थमभिदधानं सप्तभंगीमनगच्छति, तथैव परिपूर्णार्थप्रापकत्वलक्षणतात्त्विकप्रामाण्यनिर्वाहात्, क्वचिदेकभङ्गदर्श नेऽपि व्युत्पन्नमतोनामितरभंगाक्षेपध्रौव्यात् । यत्र तु घटोऽस्तीत्यादिलोकवाक्ये सप्तभंगीसंस्पर्शशून्यता तत्रार्थप्रापकत्वमात्रेण लोकापेक्षया प्रामाण्येऽपि तत्त्वतो न प्रामाण्यमिति द्रष्टव्यम्।
( सप्तभंगीस्वरूपचर्चा ) केयं सप्तभंगीति चेदुच्यते---एकत्र वस्तुन्यकैकधर्मपर्यनुयोगवशादविरोधेन व्यस्तयोः समस्तयोश्च विधिनिषेधयोः कल्पनया स्यात्काराङ्कितः सप्तधा वाक्प्रयोगः सप्तभंगी। इयं च सप्तभंगी वस्तुनि प्रतिपर्याय सप्तविधधर्माणां सम्भवत् सप्तविधसंशयोत्थापितसप्तविधजिज्ञासामलसप्तविधप्रश्नानुरोधादुपपद्यते। तत्र स्यादस्त्येव सर्वमिति प्राधान्येन विधिकल्पनया प्रथमो भंगः। स्यात्-कथञ्चित् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावापेक्षयेत्यर्थः । अस्ति हि घटादिकं द्रव्यतः पार्थिवादित्वेन, न जलादित्वेन । क्षेत्रतः
यह आगम प्रमाण सर्वत्र विधि और निषेधके द्वारा अपने प्रतिपाद्य विषयका प्रतिपादन करता हुआ सप्तभंगीको प्राप्त होता है । सप्तभंगीके रूपमें ही वह पदार्थ का पूर्णरूपसे निरूपण कर सकता है और अपनी वास्तविकताका निर्वाह कर सकता है। आगममें कहीं-कहीं एक भंग ही देखा जाता है, तथापि बुद्धिमानोंको उस एक भंगसे ही अन्य (छह) भंगोंको समझ लेना चाहिए। 'घट है' इत्यादि लौकिकवाक्योंमें जहाँ सप्तभंगोका संस्पर्श नहीं है, वहाँ यह वाक्य अर्थप्रापक होने के कारण ही लोककी अपेक्षामात्रसे प्रमाण है, किन्तु उसमें तात्त्विक प्रमाणता नहीं है। _____ सप्तभंगी-सप्तभंगी क्या है, यह बतलाते हैं। किसी भी एक वस्तुके एक-एक धर्म-संबंधी प्रश्नके अनुरोधसे, 'स्यात्' (कथंचित्) शब्दसे युक्त सात प्रकारका वचन-प्रयोग सप्तभंगी कहलाता है । वह वचनप्रयोग विवक्षाओंकी भिन्नतासे इस प्रकार किया जाता है कि उसमें परस्पर विरोध न हो । किसीमें विधिकी कल्पना होती है, किसी में अकेले निषेधको और किसी में मिले हुए विधि-निषेधकी-दोनोंकी कल्पना होती है ।
एक वस्तुके एक पर्यायमें सात प्रकारके ही धर्म संभव हैं-उससे न्यून या अधिक नहीं, अतएव सात प्रकारके ही संशय उत्पन्न होते हैं, सात ही प्रकार के संशय होनेका कारण यह है कि जिज्ञासुको जिज्ञासाएं सात प्रकारकी ही होती हैं । जब जिज्ञासाएं सात प्रकारको होती हैं तो जिज्ञासाप्रेरित प्रश्न भी सात ही हो सकते हैं और चूंकि प्रश्न सात होते हैं, अतएव उनके उत्तरस्वरूप भंग भी सात ही होते हैं। यहाँ अस्तित्व पर्यायको लेकर सात भंग दिखाते हैं
१-स्यात् सब पदार्थ हैं ही, इस प्रकार प्रधान रूपसे विधिकी विवक्षासे प्रथम भंग होता है । यहाँ 'स्पात्' का अर्थ है कथंचित् । अर्थात् सब पदार्थ अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावसे हैं जैसे घट द्रव्यसे पार्थिव रूपसे है अर्थात् मिट्टी आदिसे बना हुआ है, जलादिसे नहीं।