Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Tiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 71
________________ जैन तर्क भाषा नानागुणाश्रयत्वविरोधात् । सम्बन्धस्य च सम्बन्धिभेदेन भेददर्शनात्, नानासम्बन्धि-भिरेकत्रैकसम्बन्धाघटनात् । तैः क्रियमाणस्योपकारस्य च प्रतिनियतरूपस्यानेकत्वात्, अनेकैरुपकारिभिः क्रियमाणस्योपकारस्यैकस्य विरोधात् । गुणिदेशस्य च प्रतिगुणं भेदात्, तदभेदे भिन्नार्थगुणानामपि गुणिदेशा भेदप्रसङ्गात् । संसर्गस्य च प्रतिसंसंगि भेदात्, तदभेदे संसगिभेदविरोधात् । शब्दस्य प्रतिविषयं नानात्वात्, सर्वगुणानामेकशब्दवाच्यतायां सर्वार्थानामेक शब्दवाच्यतापत्तेरिति कालादिभिभिन्नात्मनामभेदोपचारः पिते । एवं भेदवृत्तितदुप वारावपि वाच्याविति । पर्यवसितं परोक्षम् । ततश्च निरूपितः प्रमाणपदार्थः । ५८ इति महामहोपाध्यायश्री कल्याण विजयशिष्य मुख्यपण्डितश्री लाभ विजयगणिशिष्यावतंसपण्डितश्रीजीत विजयगणि सतीर्थ्यं पण्डितश्रीनयविजयगणिशिष्येण श्रीपद्मविजयगणसहोदरेण पण्डितयशोविजयगणिना कृतायां जैनतर्कभाषायां प्रमाणपरिच्छेद: सम्पूर्ण: । पदार्थ भी नानारूप ही हो सकता है। वह नानारूप न हो तो नानागुणोंका आधार भी नहीं हो सकता । ( ४ ) संबंधियोंकी भिन्नता से संबंध में भी भेद देखा जाता है। संबंधी अनेक हों और उनका संबंध एकत्र और एक हो, यह नहीं हो सकता । ( ५ ) अनेक धर्मोके द्वारा किया जाने वाला उपकार अलग-अलग होनेसे अनेक रूप ही होता है, क्यों कि अनेक उपकारियों द्वारा किया जाने वाला उपकार एक नहीं हो सकता । ( ६ ) प्रत्येक गुणका गुणिदेश पृथक्पृथक् ही होता है । अगर अनेक गुणोंका गुणिदेश अभिन्न माना जाय तो भिन्न-भिन्न पदार्थो के गुणों के गुणिदेश में भी अभेद मानना पड़ेगा (७) संसर्गी के भेदसे संसर्गमें भी भेद होता है । संसर्ग में भेद न हो तो संसगियों (गुणों) में भी भेद नहीं हो सकता ( ८ ) विषयके भेदमे शब्द में भी भेद होता है । यदि समस्त गुण एकही शब्दके वाच्य हों तो संसारके समस्त पदार्थ भी एक ही शब्द वाच्य हो जाएँ। इस प्रकार कालादिसे भिन्न गुणोंमें अभेदका उपचार किया जाता है । इसी तरह भेदवृत्ति और भेदका उपचार भी समझ लेना चाहिए । परोक्ष प्रमाणका निरूपण पूर्ण हुआ और प्रमाणका निरूपण भी समाप्त हुआ । ACXXX

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