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प्रमाणपरिच्छेदः
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कालाः शेषानन्तधर्मा वस्तुन्येकत्रेति तेषां कालेनाभेदवृत्तिः । यदेव चास्तित्वस्य तद्गुणत्वमात्मरूपं तदेवान्यानन्तगुणानामपीत्यात्मरूपेणाभेदवृत्तिः । य एव चाधारे (रो) sa द्रव्याख्योऽस्तित्वस्य स एवान्यपर्यायाणामित्यर्थेनाभेदवृत्तिः । य एव चाविष्वग्भावः सम्बन्धोऽस्तित्वस्य स एवान्येषामिति सम्बन्धेनाभेदवृत्ति । य एव चोपकारोSस्तित्वेन स्वानुरक्तत्वकरणं स एवान्यैरपीत्युपकारेणाभेदवृत्तिः । य एव गुणिनः सम्बन्धी देशः क्षेत्रलक्षणोऽस्तित्वस्य स एवान्येषामिति गुणिदेशेनाभेदवृत्तिः । य एव चैकवस्त्वात्मनाऽस्तित्वस्य संसर्गः स एवान्येषामिति संसर्गेणाभेदवृत्तिः । गुणीभूतभेदादभेदप्रधानात् सम्बन्धाद्विपर्ययेण संसर्गस्य भेदः । य एव चास्तीति शब्दोऽस्तित्वधर्मात्मकस्य वस्तुनो वाचकः स एवाशेषानन्तधर्मात्मकस्यापीति शब्देनाभेदवृत्तिः, पर्यायार्थिकनयगुणभावेन द्रव्यार्थिकनयप्राधान्यादुपपद्यते । द्रव्यार्थिकगुणभावेन पर्यायार्थिकप्राधान्ये तु न गुणानामभेदवृत्तिः सम्भवति, समकालमेकत्र नानागुणानामसम्भवात्, सम्भवे वा तदाश्रयस्य भेदप्रसङ्गात् । नानागुणानां सम्बन्धिन आत्मरूपस्य च भिन्नत्वात्, अन्यथा तेषां भेदविरोधात्, स्वाश्रयस्यार्थस्यापि नानात्वात्, अन्यथा
यह
अभेद वृत्ति इस प्रकार होती है - (१) 'कथंचित् जीवादि वस्तु हैं ही' यहाँ जिस कालमें जीवादिमें अस्तित्व है उसी कालमें उनमें शेष अनन्त धर्म भी हैं यह कालसे अभेद वृत्ति है । (२) जीवादिका गुण होना जैसे अस्तित्वका आत्मरूप स्वरूप है, उसी प्रकार अन्य अनन्त Trier भी यही आत्मरूप है यह आत्मरूपसे अभेद वृत्ति है । ( ३ ) जो द्रव्य रूप अर्थ अस्तित्वका आधार है वही अन्य धर्मोंका भी आधार है । (४) जीवादिके साथ अभेद रूप जो संबंध अस्तित्वका है, वही संबंध अन्य धर्मोका भी है । संबंध से अभेद वृत्ति है । ( ५ ) अस्तित्व धर्म जीवादिका जो उपकार करता है- अपनेसे युक्त बनाता है, वही उपकार अन्य धर्म भी करते हैं । यह उपकारसे अभेद वृत्ति है । ( ६ ) अस्तित्व धर्म जीवादिमें जिस देशमें रहता है, उसी में अन्य धर्म भी रहते हैं । यह गुणिदेशसे अभेद वृत्ति है । ( ७ ) अस्तित्वका जीवादिके साथ एक वस्तु रूपसे जो संसर्ग है, वही अन्य धर्मोका भी संसर्ग है । यह संसर्गसे अभेद वृत्ति है। (८) 'अस्ति' ( है ) यह शब्द अस्तित्वधर्मात्मक वस्तुका वाचक है, वही अन्य अनन्तधर्मात्मक वस्तु का भी वाचक है । यह शब्दसे अभेद वृत्ति है । यह अभेदवृत्ति पर्यायार्थिक नयको गौण और द्रव्यार्थिक नयको मुख्य करने पर होती है । किन्तु जब द्रव्याथिक नय गौण और पर्यार्थिक नय मुख्य होता है तब अभेद वृत्ति संभव नहीं है । क्यों कि( १ ) एक ही कालमें, एक वस्तुमें, नाना गुण संभव नहीं हैं । अगर संभव हों तो उससे अधारभूत वस्तुमें भी भेद हो जायगा । ( २ ) नाना गुणों-संबंधी आत्मरूप भिन्न-भिन्न होता है । अगर भिन्न न हो तो गुणोंमें भेद नहीं हो सकता । ( ३ ) नाना गुणोंका आधारभूत