Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Tiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ प्रमाणपरिच्छेदः न; ज्ञानोपादानत्वेन तत्र ज्ञानत्वोपचारात्, अन्तेऽर्थावग्रहरूपज्ञानदर्शनेन तत्कालेऽपि चेष्टाविशेषाद्यनुमेयस्वप्नज्ञानादितुल्याव्यक्तज्ञानानुमानाद्वा एकतेजोऽवयववत् तस्य तनुत्वेनानुपलक्षणात् । ( व्यञ्जनावग्रहस्य चातुविध्यप्रदर्शने मनश्चक्षुषोरप्राप्यकारित्वसमर्थनम् । ) । १ स च नयन-मनोवर्जेन्द्रियभेदाच्चतुर्धा, नयन-मनसोरप्राप्यकारित्वेन व्यजनावग्रहासिद्धः, अन्यथा तयोर्जेयकृतानुग्रहोपघातपात्रत्वे जलानलदर्शन-चिन्तनयोः क्लेद-दाहापत्तेः । रवि-दन्द्राद्यवलोकने चक्षुषोऽनुग्रहोपघातौ दृष्टावेवेति चेत्, न; प्रथमावलोकनसमये तददर्शनात्, अनवरतावलोकने च प्राप्तेन रविकिरणादिनोपघातस्या(स्य), नैसर्गिकसौम्यादिगुणे चन्द्रादौ चावलोकिते उपघाताभावादनुग्रहाभिमानस्योप समाधान-व्यंजनावग्रह ज्ञानका उपादान है, अतएव वह भी उपचारसे ज्ञान है। इसके अतिरिक्त व्यंजनावग्रहके अन्तमें अर्थावग्रहरूप ज्ञानकी उत्पत्ति देखी जाती है, अत: व्यंजनावग्रहके काल में भी चेष्टाविशेषसे अनुमान करने योग्य स्वप्नज्ञानकी तरह अव्यक्त ज्ञानका अनुमान होता है । तात्पर्य यह है कि जैसे स्वप्न के समय विभिन्न प्रकारकी चेष्टाओंको देखनेसे ज्ञानका अनुमान होता है, उसी प्रकार व्यंजनावग्रहके समय भी अव्यक्त ज्ञानका अनुमान होता है । जैसे अग्निका एक सूक्ष्म कण विद्यमान होनेपर भी अनुभवमें नहीं आता, उसी प्रकार व्यंजनावग्रहकालीन ज्ञान भी अति सूक्ष्म होनेके कारण मालूम नहीं होता। ___ व्यंजनावग्रह १ चक्षु और मनको छोडकर शेष चार इन्द्रियोंसे उत्पन्न होनेके कारण व्यंजनावग्रह चार प्रकारका है। चक्षु और मनके अप्राप्यकारी होनेसे उनसे व्यंजनावग्रह नहीं होता। इन दोनोंको यदि प्राप्यकारी माना जाय तो ज्ञेय पदार्थजनित अनुग्रह और उपघातका पात्र भी उन्हें मानना पडेगा। ऐसी स्थिति में जलको देखनेसे आँख में गीलापन आ जायगा और अग्निको देखनेसे दाह होगा। इसी प्रकार मनसे जलका चिन्तन करनेपर आर्द्रता और अग्निका चिन्तन करनेपर दाह होना चाहिए। शंका-सूर्य और चन्द्र आदिका अवलोकन करनेपर नेत्रका अनुग्रह और उपघात होता है । अतः चक्षुको प्राप्यकारी क्यों न माना जाय ? समाधान-चक्षु प्राप्यकारी होती तो सूर्य और चन्द्रमाको देखनेके प्रथम क्षणमें ही उपघात और अनुग्रह होता; किन्तु ऐसा होता नहीं है, अतः वह प्राप्यकारी नहीं है। हाँ, लगातार देखते रहने से, आँख के साथ सूर्यकी किरणोंका संस्पर्श होता है और उससे उपघात होता है। और चन्द्रमा आदि स्वभावतः सौम्य पदार्थोंको देखने पर उपघात न होने के कारण अनुग्रहका ख़याल मात्र उत्पन्न होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110