________________
प्रमाणपरिच्छेदः
४९
नास्त्यस्यासत्यं वचः, रागायकलंकितज्ञानकलितत्वात् । नोद्गमिष्यति मुहूर्तान्ते पुष्यतारा, रोहिण्युदगमात् । नोदगान्मुहूर्तात्पूर्व मृगशिरः, पूर्वफा (फ)ल्गुन्युदयात् । नास्त्यस्य मिथ्याज्ञानं, सम्यग्दर्शनादिति । अत्रानेकान्तः प्रतिषेध्यस्यैकान्तस्य स्वभावतो विरुद्धः । तत्त्वसन्देहश्च प्रतिषेध्यतत्वनिश्चयविरुद्धतदनिश्चयव्याप्यः। वदनविकारादिश्च क्रोधोपशमविरुद्धतदनुपशमकार्यम् रागाद्यकलङ्कितज्ञानकलितत्वं चासत्यविरुद्धसत्यकारणम् । रोहिण्युद्गमश्च पुष्यतारोद्गमविरुद्धमृगशीर्षोदयपूर्वचरः। पूर्वफल्गुन्युदयश्च मृगशीर्षोदयविरुद्धमघोदयोत्तरचरः। सम्यग्दर्शनं च मिथ्याज्ञानविरुद्धसम्यग्ज्ञानसहचरमिति ।
प्रतिषेधरूपोऽपि हेतुद्विविधः-विधिसाधकः प्रतिषेधसाधकश्चेति । आद्यो विरुद्वानुपलब्धिनामा विधेयविरुद्धकार्यकारणस्वभावव्यापकसहचरानुपलम्भभेदात्प
धा । यथा अस्त्यत्र रोगातिशयः, नीरोगव्यापारानुपलब्धः। विद्यतेऽत्र कष्टम्, इष्टसंयोगाभावात् । वस्तुजातमनेकान्तात्मकम्, एकान्तस्वभावानुपलम्भात् । अस्त्यत्र छाया, औष्ण्यानुपलब्धः। अस्त्यस्य मिथ्याज्ञानम्, सम्यग्दर्शनानुपलब्धेरिति । वचन असत्य नहीं है, क्योंकि यह रागादिसे अकलंकित ज्ञानसे सम्पन्न है। यह विरुद्ध कारणोपलब्धि है, क्योंकि रागादिसे अकलंकित ज्ञानसे सम्पन्न होना असत्यसे विरुद्ध सत्य वचनका कारण है। ५-मुहूर्त्तके पश्चात् पुष्यताराका उदय नहीं होगा क्योंकि अभी रोहिणीका उदय है। यह विरुद्ध-पूर्वचर हेतु है, क्योंकि रोहिणीका उदय पुष्यताराके उदयसे विरुद्ध मृगशीर्ष नक्षत्र के उदयका पूर्वचर है। ६-मुहुर्त पहले मृगशीर्षका उदय नहीं हुआ है, क्योंकि इस समय पूर्वफल्गुनी नक्षत्रका उदय है । यह विरुद्ध-उत्तरचर हेतु है, क्योंकि पूर्वफल्गुनीका उदय मृगशीर्षके उदयसे विरुद्ध मघा नक्षत्रके उदयका उत्तरचर है । ७-इस पुरुषमें मिथ्या ज्ञान नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शनका सद्भाव है। यह विरुद्ध सहचरोपलब्धि हेतु है, क्योंकि सम्यग्दर्शन, मिथ्याज्ञानसे विरुद्ध सम्यग्ज्ञानका सहचर है।
प्रतिषेधरूप हेतु भी दो प्रकारका है- विधिसाधक और निषेधसाधक । जो हेतु स्वयं निषेधरूप हो किन्तु विधिका साधक हो, वह 'विरुद्धानुपलब्धि' कहलाता है। उसके पाँच भेद हैं
(१) साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धि (२) साध्यविरुद्धकारणानुपलब्धि (३) साध्यविरुद्धभावानुपलब्धि (४) साध्यविरुद्धव्यापकानुपलब्धि (५) साध्यविरुद्धसहचरानुपलब्धि । इनके उदाहरण क्रमशः इस प्रकार हैं
१-इस पुरुषमें रोगकी तीव्रता है, क्योंकि नीरोग व्यापारकी अनुपलब्धि है । २-इसको कष्ट है, क्योंकि इष्ट-संयोगका अभाव है। ३-वस्तु अनेकान्तात्मक है, क्योंकि एकान्त स्वभावकी अनुपलब्धि है। ४-यहाँ छाया है, क्योंकि उष्णताकी अनुपलब्धि है । ५-इसमें मिथ्याज्ञान है, क्योंकि सम्यग्दर्शनकी अनुपलब्धि है । इन हेतुओंको पूर्वोक्त हेतुओंकी भाँति समझ लेना चाहिए।