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प्रमाणपरिच्छेदः
पक्षसाध्यसंसर्गभानावनुमानवैक (फ) ल्यापत्तिः विना पर्वतो वह्निमानित्युद्देश्यप्रतीतिमिति यथातन्त्रं भावनीयं सुधीभिः । इत्थं च ' पक्वान्येतानि सहकारफलानि एकशाखाप्रभवत्वाद् उपयुक्तसहकारफलवदित्यादौ बाधितविषये, मूर्खोऽयं देवदत्तः तत्पुत्रत्वात् इतरतत्पुत्रवदित्यादौ सत्प्रतिपक्षे चातिप्रसंगवारणाय अबाधितविषयत्वासत्प्रतिपक्षत्वसहितं प्रागुक्तरूपत्रयमादाय पाञ्चरूप्यं हेतुलक्षणम्, इति नैयायिकमतमप्यपास्तम् ; उदेष्यति शकटमित्यादौ पक्षधर्मत्वस्यैवासिद्धेः, स श्यामस्तत्पुत्रत्वादित्यत्र हेत्वाभासेऽपि पाञ्चरूप्यसत्त्वाच्च, निश्चितान्यथानुपपत्तेरेव सर्वत्र हेतुलक्षणत्वौचित्यात् । ( साध्यस्वरूपचर्चा | )
न हेतुना साध्यमनुमातव्यम् । तत्र किंलक्षणं साध्यमिति चेत्; उच्यते अप्रतीतमनिराकृतमभीप्सितं च साध्यम् । शङ्कित विपरीतानध्यवसितवस्तूनां साध्यता
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पर्वत अग्निमान् है, इस उद्देश्यप्रतीतिके विना ही पक्ष और साध्य के संसर्गक । ( पर्वत में अग्नि अस्तित्वका ) भान हो जायगा; ऐसी स्थिति में अनुमानकी कोई सार्थकता नहीं रहेगी । इस विषय में विद्वानों को शास्त्रानुसार स्वयं ही विचार करलेना चाहिए ।
मान्यता अनुसार हेतुमें पाँच लक्षण होने चाहिए। पूर्वोक्त तीन लक्षणों में अवाधितविषयत्व और २ असत्प्रतिपक्षत्वको मिला देनेसे हेतुके पाँच लक्षण होते हैं । 'यह आम्रफल पके हुए हैं, क्योंकि एक ही शाखामें उत्पन्न हुए हैं' इत्यादि बाधितविषयमें हेतुका अतिप्रसंग रोकने के लिए अबाधितविषयत्व आवश्यक है । तथा 'यह देवदत्त मूर्ख है, क्योंकि अमुकका पुत्र है, अन्य पुत्रोंके समान।' इस प्रकार के सत्प्रतिपक्ष हेतुओंमें अतिप्रसंग रोकने के लिए असत्प्रतिपक्षत्वको हेतुका लक्षण मानना आवश्यक है ।
Starfraint यह मान्यता भी बौद्धमतकी मान्यताका निरास करने से ही निरस्त हो जाती है । क्योंकि शकटका उदय होगा, कारण इस समय कृत्तिकाका उदय है, इत्यादि हेतुओं में पक्षधर्मत्व ही सिद्ध नहीं है ।
इसके अतिरिक्त गर्भस्थ मंत्र-पुत्र, श्याम है, क्योंकि वह मैत्रका पुत्र है; यहाँ हेत्वाभास में भी पाँचों लक्षण विद्यमान हैं। आशय यह है कि कहीं-कहीं समीचीन हेतुमें भी पाँच लक्षण नहीं होते अतः हेतुके उक्त लक्षणों में अव्याप्ति दोष आता है और कहीं-कहीं हेत्वाभास में भी वे पाये जाते हैं, इस कारण अतिव्याप्ति दोष आता है । अतएव निश्चित अन्यथानुपपत्ति को ही हेतुका लक्षण मानना उचित है ।
साध्यः - हेतु के द्वारा साध्यका अनुमान किया जाता है । तो साध्य किसे कहते हैं ? इस प्रश्नका उत्तर यह है- जो अप्रतीत हो अर्थात् प्रतिवादीको सिद्ध न हो, जो अनिराकृत हो अर्थात् प्रमाणसे बाधित न हो और अभीप्सित हो अर्थात् वादीको सिद्ध हो, वह साध्य कहलाता है ।
१ प्रत्यक्षादि किसी प्रमाणसे साध्य में बाधा न आना। २ समान बलशाली विरोधी हेतुका न होना ।