Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ प्रथम अध्याय सातवीं शताब्दी से पूर्व की भारतीय राजनीति प्राचीन भारत में सातवीं शताब्दी से पूर्व राजशास्त्र के अनेक आचार्य हुए हैं, जिनको राजनीति के क्षेत्र में महती देन है। सातवीं शताब्दी से पूर्व की राजनीति पर एक विहंगम दृष्टि डालने के लिए इसे निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है - (1) सिन्धु युगीन राजनीति । (2) वैदिक कालीन राजनीति । . (3) महाकाव्यों में वर्णित राजनीति । . (4) स्मृति ग्रन्थों में प्रतिपादित राजनीति । (5) राजनीति प्रधान ग्रन्थों में वर्णित राजनीति । इन सब का समग्र अध्ययन तो इन ग्रन्थों अथवा इनके आधार पर लिखे गए विस्तृत ग्रन्धों से ही सम्भव हो सकता है । यहाँ हमारे शोध प्रबन्ध की पृष्ठ भूमि के रूप में उनके कतिपय मालिक तत्वों पर ही क्रमश: प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया है - (1) सिन्धु युगीन राजनीति - सिन्धु प्रदेश की राजनीति और शासन व्यवस्था के विषय में हमारा ज्ञान अनुमान पर ही निर्भर है । किसी निश्चित साक्ष्य के अभाव में यह कहना कठिन है कि देश की सत्ता किसी राजा अथवा उसके या जनता के प्रतिनिधि के हाथ में थी अथवा पुरोहित वर्ग के हाथ में थी परन्तु यह अनुमानस्वाभाविक प्रतीत होता है कि केन्द्रीय सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया था । कदाचित् केन्द्रीय शासन की ओर से अनेक पदाधिकारी भिन्न-भिन्न नगरों में शासन करते थे। कदाचित् इन्हें नगर पासियों का भी सहयोग प्राप्त था । सिन्यु प्रदेश में प्रतिष्ठित समष्टिगत जीवन को देखते हुए यह कहना असंगत न होगा कि विभिन्न नगरों में नगरपालिकाओं की भी व्यवस्था थी। नालियों को संरक्षित और साफ रखने, स्थान- स्थान पर कूड़ा एकत्र करने के लिए मिट्टी के बने हुए घड़ों और पीपों को रखने तथा उस संग्रहीत कूड़े को नगर के बाहर फिकवाने, सड़कों, पुलों, नगरों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण और जीर्णोद्धार करने, व्यक्तिगत भवनों के आकार प्रकार और खिड़कियों तथा नालियों आदि की दिशा पर नियन्त्रण रखने, श्रम, मुल्य,लाम, माप, तोल आदि सार्वजनिक विषयों को नियमानुकूल रखने इत्यादि के लिए प्रत्येक नगर में नगरपालिका के समान कोई संस्था अवश्य रही होगी। मैके का कथन है कि मोहनजोदड़ों का नगर रक्षा के निमित्त दीवारों के द्वारा कई भागों में विभाजित कर दिया गया था। इन विभागों में रात्रि के समय पुलिस के गश्तों को योजना रही होगी। अनेक सड़कों के कोनों पर भी एकएक भवन के ध्वंसावशेष मिले हैं । कदाचित् वे पुलिस के नाके थे।"शान्ति प्रिय जीवन होने के कारण सिन्धु निवासियों को कभी बहुसंख्यक पुलिस अथवा मिलिटरी की आवश्यकता न रहो होगी । पुलिस का योग एकमात्र सार्वजनिक कार्यों के निमित्त ही किया जाता होगा। उत्खनन में भवनों और सड़कों के जो ध्वंसावशेष निकले हैं, उनमें से अधिकांश आश्चर्यजनक रूप से संरक्षित और व्यवस्थित हैं। इनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि सिन्धु प्रदेश दीर्घकाल तक विप्लव और अशान्ति से मुक्त रहा होगा ।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 186