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आस्तिक-आगम प्रमाणसे तो आत्माकी सिद्धि जरुर हो सक्ती है। क्योंकि अविवादास्पद वचन कहनेवाले आप्त पुरुषने शास्त्र रचे हैं । इस लिये आपको चाहिये कि आगम प्रमाणका सादर स्त्रीकार करें।
नास्तिक-नहीं जी नहीं, हम इस यातको कभी न स्वीकारेंगे। क्योंकि ऐसा कोइभी पुरुष नजर नहीं आताहै कि निस्के तमाम
वचन अविसवादी होसके, और आगम परस्पर विरुद्ध होतेहैं। एक __ आगम कुछ कहताहै, तो दूसरा कुछ कहताहै, झटभरम पड जाता है कि कोनसा आगम सचाहै और फौनसा झूठा। इस तरहके सदेह रुप अग्नि जालासे आगम ज्ञानके दग्ध होनेसे आगम ज्ञानसे भी आत्मसिद्धि बतलाना पिलकुल हिमाकत (मूर्खता) में दाखिल है, और अपने दिल्में आप यहभी घमड न रखें कि
उपमान प्रमाणसे आत्मसिद्धि हो सकेगी। क्योंकि उपमान उ__ स्का नाम है कि जैसे किसी शरसने किसीसे पूछा क्यों
जी! रोय कैमा होता है ? उस्ने जवाब दियाकि मानिंदगो (बैल) के मालूम होता है । इस उमाको श्ररण कर वोही __ आदमी किसी दिन जगलमें गया। आगे चलकर देखता है तो
रोझ आ रहाथा उस्ने इस प्राणीको कभी नहीं देखाथा मगर फिरभी उसे इस्म हासिल हुआ। क्योंकि उस्ने उरका आकार गोसदृश देखा तो झट मुनी हुइ च त या आ' फि "गोम