Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
View full book text
________________
श्री गौतम स्वामी 1
तो वे पुनः पूछते थे। इस तरह शंकाओं का समाधान होने और पूर्व संचित ज्ञान पर मनन करने से उनका ज्ञान बहुत अधिक बढ़ गया।
वे अत्यधिक तप करते थे । तप के प्रभाव से उन्हें बहुत सी लब्धियां (शक्तियाँ) प्राप्त हुई। यथा-सूर्य किरणों के सहारे पर्वत पर चढ़ जाना और एक ही पात्र में हजारों मनुष्यों को भोजन करा देना इत्यादि पर उन्हें न तो इन शक्तियों पर अभिमान था और न ही वे उनका दुरुपयोग करते थे। - श्री गौतमस्वामी की उपदेश प्रणाली बहुत ही अचूक थी। चाहे जैसे मनुष्य को वे थोड़ी देर में ही समझा देते। जब प्रभु महा. वीर स्वामी को किसी को उपदेश देने के लिए भेजने की आवश्यकता पड़ती तो वे उन्हीं को भेजते थे। और गौतम स्वामी उन्हें अवश्य बोध करा देते थे।
एकबार प्रभु महावीर और गौतम स्वामी विहार कर रहे थे। ठीक दोपहर के समय वे एक खेत के पास से निकले । एक किसान हल जोत रहा था। प्रभु ने गौतम से कहा-गौतम इस किसान को बोध दो । गौतम तुरन्त उस किसान के पास गया । प्रभु आगे चल दिये।
गौतमस्वामी ने किसान के पास जाकर उपदेश दिया । किसान को आत्म कल्याण को उमंग आई । उसे वीर भगवान के साधु का वेश दिया गया। अब वे दोनों प्रभु महावीर की ओर चले। रास्ते में किसान ने पूछा-'हम कहां जा रहे हैं ?" गौतम स्वामी ने कहा- 'मैं अपने गुरू के पास जा रहा हूँ।"
किसान को बड़ा आश्चर्य हुआ। कहने लगा-भगवन् ! क्या आपके भी गुरु हैं । गौतम स्वामी ने कहा-'हाँ । देवों के लिए भी वंदनीय और समस्त जगत के पूज्य मेरे गुरु हैं।"
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org