Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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धो गौतम स्वामी ]
जो श्री सर्वज्ञ के दर्शन होंगे। आज जीवन सफल होगा"। शिष्यों ने आकर सब समाचार गौतम को बतलाये।
गौतम तो सुनते ही चकित रह गया, तुरन्त उसके मुंह से निकल पड़ा-सर्वज्ञ कौन है ? सर्वज्ञ तो कोई हो ही नहीं सकता, निश्चय ही यह कोई जादूगर है, और भोलेभाले लोगों को ठगता है, मुझे एक ब्राह्मण के नाते अपना कर्तव्य पालन करने के उद्देश्य से इसका कपट जाल तोड़ना और लोगों को उसमें फँसने से बचाना चाहिए । उसने अग्निभूति को बुलाया और कहा-भाई अग्निभूति !
___ अग्निभूति- क्या आज्ञा है महाराज ! .. गौतम-मैं इस जादूगर की जाँच करने जाता हूँ, तुम यज्ञ का समस्त कार्य सम्पादन करना ।
अग्निभूति-भाई साहब, यह सब कार्य करने के लिए तो हम लोग ही तैयार हैं, फिर आपको कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है। हमें आज्ञा दीजिये, हम उसका भंडाफोड़ करेंगे।
गौतम-नहीं, मैं स्वयं ही जाकर जाँच करूगा, यह तुम्हारा काम नहीं है । यह कह कर वह अपने शिष्यों के साथ चल दिया। सबने कहा-आपकी जय हो, काम पूरा करके शीघ्र वापस आइये।
__ एक बड़ी सभा भरी है। मध्य में महावीर स्वामी विराजमान हैं। उनकी कांति अद्भुत है। उनका प्रभाव अलौकिक है । वे अमृतमय वाणी से उपदेश दे रहे हैं। सब एकाग्र तन-मन से उपदेश सुन रहे हैं।
. इसी समय गौतम आये। आगे आगे वे और उनके पीछे शिष्य वर्ग चल रहा है । गौतम ने दूर से ही प्रभु महावीर को देखा
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