Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह
थे। इनके दो भाई थे, एक का नाम अग्निभूति और दूसरे का वायुभूति था। ये दोनों भी बड़े विद्वान थे और अपने अपने गुरुकुल चलाते थे।
(२) इस देश में अपापा नामक एक नगरी थी । वहाँ सोमिल नामक धनवान ब्राह्मण रहता था। उसने एकबार एक बृहद् यज्ञ करने के लिए एक इन्द्रभूति गौतम तथा उनके दोनों भाइयों को निमन्त्रण भेजा। इनके अतिरिक्त अन्य ८ विद्वान ब्राह्मणों को भी बुलाया। इन ११ ब्राह्मणों में इन्द्रभूति गौतम सबसे अधिक विद्वान था, अतएव वह यज्ञ का सर्वोपरि आचार्य नियुक्त हुआ। नगर के बाहर एक बाग में मंडप बनाया गया और उसकी आज्ञानुसार.सब कार्य होने लगा। होम प्रारम्भ हुआ, घी की आहुतियां दी जाने लगी, वेद ध्वनि गूंजने लगी। . इसी समय वहाँ महावीर स्वामी पधारे। वे महाज्ञानी और महान तपस्वी थे । अभी थोड़े समय पूर्व ही उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। उनका प्रभाव अद्भुत था। लोग उनका नाम सुनकर मस्तक झुका देते थे। .: अपाषा पुरी में इन महात्मा के आने का समाचार पहुँचना
था कि जन समूह दर्शनों के लिए उमड़ पड़ा। कोई हाथी पर, कोई घोडे पर, कोई पालकी में सवार होकर आया। कोई ऊँट पर आया तो कोई पैदल । यह धूमधाम देखकर गौतम ने सोचा-आज का दिन और यह यज्ञ धन्य है, जो इतने मनुष्य यज्ञ में भाग लेने के लिए आरहे हैं, परन्तु थोड़ी ही देर बादं गौतम के आश्चर्य की सीमा न रही, जब उसने देखा कि जन-समूह यज्ञ में न आकर बाग की दूसरी ओर जा रहा है। उसने शिष्यों को यह जानने के लिए भेजा कि ये लोग उधर कहां जा रहे हैं । शिष्यों ने वहाँ जाकर देखा तो लोग परस्पर चर्चा कर रहे थे-"धन्य है आज का दिन, धन्य है यह घड़ी,
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