Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 12
________________ ( ९ ) रो तं रयणि अवंति वई अहिसितो पालगोराया ॥ १ ॥ सट्टी पालग रण्णोपणवरण सयं तु होइनं दाण असयं मुरियाणं तीसं चित्र समित्तस्स ॥ २ ॥ वलमित्त भानुमित्ता सट्टीवारिसाणि चत्तनहवहणे तहगद्दाभिल्ललारज्जं तेरसवरिसा सगस्सचौ ॥ ३ ॥,, अर्थात् पालक अवन्ती के राजा का उस रात को राज्याभिषेक हुआ कि जिस रात को अर्हत तीर्थकर महावीर का निर्वाण हुआ ॥ १ ॥ साठ बरस राजा पालक के लेकिन १५५ बरस नन्दों के १०८ मौर्यो के और ३० पृसमित्त अर्थात् पुष्पमित्र के ॥ २ ॥ ६० बरस बलमित्र और भानुमित्र ने राज किया ४० नभोवाहन ने १३ बरस इसी तरह गर्दभिल्ल का सज रहा और शाका ४ है ॥ ३ ॥ यह श्लोक बहुत पोथियों में लिखे हैं और पुराने जैनियों ने इसी के अनुसार महावीर और विक्रम के संवत् ठहराये हैं पर इन की असल नहीं मालूम होती ४ शाके का १३ गर्दभिल्ल का ४० नभोवाहन का ६० वलमित्र और भानुमित्र का ३० पुष्पमित्र का और १०८ मौर्यो का जोड़ने से २५५ होता है और उस में विक्रम के संवत् का ५७ बरस मिलाने से चन्द्रगुप्त का अभिषेक ३१२ बरस सन् ईसवी से पहले ठहरता है और यूनानियों के संवत् से इस संवत के पास पास मिलजाने से साबित होता है कि विक्रम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com •

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