Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 10
________________ ( ७ ) और उस मूरत पर संवत्सर ९८ खुदा है और उसी जगह से निकले हुए दूसरे पत्थरों पर हविश्क और कनिश्क के नाम रहने से साबित है कि वह विक्रमही का संवत्सर है सिवाय इसके बौद्धों के शास्त्रों में जैन मत स्थापन करनेवाले अथवा उसे दुरुस्त करनेवाले का चरचा हैं कुछ जैनियों के नाम से नहीं किन्तु निगंठनाथ या निगंठनात पुत्त के नाम से निगंठ तो जैनी साधुओं का नाम मालूम ही है नातपुत्त हम नायपुत्त जो कल्पसूत्र और उत्तराध्ययन सूत्र में महावीर का विरुद लिखा है समझते हैं नयपाल के बौद्ध पुस्तकों में निगंठनाथ को ज्ञाति का पुत्र लिखा है और जैन लोग महावीर को ज्ञात पुत्र कहते हैं हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व का यह श्लोक है "कल्याणपादपरमं श्रुतगङ्गीहिमाचलम् । विश्वां भोजरविं देवं वन्दे श्रीज्ञातनन्दनम् ॥, महावीर को ज्ञातनन्दन इसवास्ते कहा कि कल्पसूत्र में उनके बाप को ज्ञात चत्रिय लिखा है सामन्नफल सूत्र में निगंठनाथ पुत्र को अग्नि वैश्यायन लिखा है यह बौद्धों की भूल मालूम होती है उन्होंने शायद महावीर को उस के मुख्य शिख्य सुधर्मा से मिलाकर एक कर दिया क्योंकि सुधर्मा अग्नि वैश्यायन था अफ़सोस सामन्नफल सूत्र में जहां निगंठनात पुत का मत वर्णन किया है शाका और संवत् नहीं लिखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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