Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 8
________________ मानकर जेनी होगये पर यह वाहियात है जैनियों में दोही भेद हैं साधु (यति) और श्रावक और अगर । वह जातिभेद मानते हैं तो लंका के बौद्ध भी मानते हैं इस्से मत से कुछ इलाका नहीं यह तो आपस का ब्यौहार है यहबात भी कि बौद्धों की पाली भाषा जैनियों की प्राकृत से पुरानी है लिहाज़ के लाइक नहीं क्योंकि जैनियों के सूत्र जैसे अब हैं महावीर के निर्वाण से प्रायः एक हज़ार बरस पीछे लिखेगये इस अर्से में ज़रूर बोली बदली होगी सिवाय इसके जैनियों के १४ पूर्व नाश होगये ॥ जैनियों के शास्त्र से साबित है कि महावीर बिम्बिसार और अजातशत्रु के समय में थे सूत्रों में जैन साधुओं को निग्रंथ और साध्विओं को निग्रंथी लिखा है बराहमिहिर और हेमचंद्र उनको निग्रंथ लिखते हैं शंकर और आनंदगिरि इत्यादि और २ लिखनेवाले उसके बदल उनको विबसन और मुक्तांवर के नाम से लिखते हैं अशोक के शिलास्तंभों पर बौद्ध श्रमणों से जुदा साधुओं को निगंठ कहा है कि जिसको डाक्टर बुहलर जैनियों का निग्रंथ समझता है बौद्धों के पीटकों में अक्सर निगंठों को बुद्ध और बौद्धों का वादी लिखा है निदान इन बातों से साबित होताहै कि जैनी और बौद्ध बराबर के मत वाले थे और आरंभही से इस बगवरी का प्रमाण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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