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- ( २३ )' .. : एक तो भट्ट जी की रचना में उर्दू के तत्सम शब्दों का प्रयोग पाया जाता है। .. इसके सिवाय भाषा को व्यापक बनाने की ओर भी इनका विशेष ध्यान था। भावों को प्रकट करने के लिए भट्ट जी ने कई प्रकार के मुहाविरों और कहीं-..' कहीं ग्रामीण और अंगरेज़ी शब्दों से भी सहायता ली है। इनकी शैली में - । इनके व्यक्तित्व की छाप मिलती है । लेखों के शीर्षक मे भाषा की भावभंगी
स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है । रोचकता और सजीवता इनकी शैली के मुख्य गुण । हैं । भाषा के सिवा भट्ट जी का विषय चयन भी विशेषता रखता है । साधा___रण विषय जैसे 'नाक' 'कान' 'आँख' 'बातचीत' पर भी इन्होंने सुन्दरं लेख लिखे हैं। साथ ही सुरुचिपूर्ण साहित्यिक निवन्ध लिखने की परिपाटी भी भट्ट जी ने ही पहले-पहल हिन्दी में उपस्थित की । हिन्दी में गद्यकाव्य के निर्माता भी भट्ट जी ही माने जा सकंते हैं । अाजकल कवित्वपूर्ण शैली से गद्य लिखने की एक परिपाटी चल पड़ी है, भट्ट जी ने भी काव्यात्मक गद्य की भावपूर्ण । 'रचना की है । 'हिन्दी-प्रदीप' के द्वारा भट्ट जी ने हिन्दी साहित्य को नवीन . प्रकाश दिया; और प्रभावशाली भाषा, सुरुचिपूर्ण विषय-चयन और अनोखी सुन्दर शैली से हिन्दी का बड़ा उपकार किया।
प्रतापनारायण मिश्र मिश्र जी गद्य-लेखन-प्रणाली मे एक प्रकार से भट्ट जी के सहयोगी कहे जा सकते हैं। भट्ट जी की भॉति मिश्र जी भी साधारण से साधारण विषयों पर सुन्दर निबन्ध लिखने में कुशल थे। नित्य के व्यवहार में भी कुछ 'तथ्य की बातें कही जा सकती हैं, इसका स्वरूप इनके निबंधों से प्राप्त होता है । इनकी रचना मे भी इनके व्यक्तित्व की छाप है। हास्यरसपूर्ण और व्यंगात्मक लेख लिखने में यह सिद्धहस्त थे । लेखों के विषय-निर्वाचन मे इनके 'मौजी स्वभाव का प्रतिविम्ब झलकता है। इनकी शैली की एक विशेषता यह है कि इन्होंने नागरिक भाषा-शैली के साथ-साथ साधारण जन-समुदाय की भाषा-शैली को भी अपनाया । इन्होंने अपने फक्कड़पन की मौज में कहीं-कहीं अपनी बैसवाड़ी भाषा और ग्रामीण मुहाविरों का भी प्रयोग किया है । इनके