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. ( ३६ ). , नहीं हुई । वाक्य छोटे-छोटे, पर गंभीर भावों से भरे हुए हैं। इनकी रचना ___ में भाव व्यंजना का प्रदर्शन बहुत ही सुन्दर रीति से हुआ है । आत्मा की ' अनुभूति करुण रस से पूर्ण है । वाक्यों का सगठन सुन्दर हुअा है। रायमाहवं,'. __की रचना मे चमत्कार है, आकर्षण है, उन्माद और लालित्य है । श्राप, । सासारिक घटनाओं मे पाठकों का मन नहीं लगाये रहना चाहते, वरन् - स्वर्गीय विभूति और कल्पना का दर्शन कराना चाहते हैं । भाषा की मधुरता की ओर इनका अधिक ध्यान है । तात्पर्य यह है कि नित्य व्यवहार मे आने, वाले विशुद्ध शब्द इनकी रचना में प्रयुक्त हुए हैं जो स्वाभाविकता की रक्षा । ( करते हैं । साधारण बात को वे अलकारिक, ढङ्ग से कहना अधिक उचित समझते हैं । ' भाव-व्यजना में वे अपनी मनोहर शैली का उपयोग करते हैं । और भाव ही उसका अाधार है । कथन-प्रणाली मे महत्वपूर्ण अाकर्षण है । राय कृष्णदास जहाँ गद्य-काव्य को प्रश्रय देने वाले हैं वहाँ कहानी-रचना में
भी सफल हैं। इनकी कहानियों से भी स्वानुभूति की मार्मिकता व्यंजित होती । है । भावना की प्रधानता का दर्शन इनकी रचनाओं में प्राप्त होता है । राय , 'कृष्णदास की रचनाएँ कला-प्रधान होती हैं। क्योंकि आप स्वयं कला के मर्मश और पारखी है।। .
वियोगी हरि '' वियोगी हरि की गद्य-शैली भी भावना प्रधान है, किन्तु प्रकाशन-शैली में अन्तर है । वियोगी हरि के भावना-प्रकाशन में भक्ति का अधिक समावेश है । 'अन्तर्नाद' में इनके गद्य-काव्य का उत्कृष्ट रूप दिखाई पड़ता है, फिर भी, .. व्यवहारिकता और लोकाचार की शैली के अनुरूप इनकी रचनाएँ नहीं हैं। इनमें 'आत्मानुभूति का ही उत्कृष्ट दर्शन प्राप्त होता है । भाषा को लच्छेदार
और संस्कृत पदावली से पूर्ण बनाने की ओर लेखक का ध्यान अधिक है। यह निश्चित है कि जब लेखक गद्य-शैली के वाह्य सौंदर्य की ओर ध्यान देता है तो अान्तरिक सौदयं स्वभावतः कृश पड़ जाता है । वियोगी हरि की रचनायें कही-कहीं इतनी विष्ट हो गई हैं कि संस्कृत के कवि वाण