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कश्मीर] कहते हैं । तीर्य भी हिन्दुओं के वहाँ कई एक है पर सब से प्रसिद्ध श्रीनगर के . आठ मजिला उत्तर दिशा को बर्फ के पहाड़ों मे ज्योतिलिग अमरनाथ महादेव के दर्शन हैं । बरस भर मे एक दिन श्रावण की पूर्णिमा को उनका दर्शन होता __ है। बड़ा मेला लगता है। रास्ता बहुत विकट है । अंत में सात अठि कोस - बर्फ पर चलना पड़ता है। कपड़ा पहनकर वहाँ कोई नहीं जाने पाता। एक ।
मजिल पहले से नगे हो जाते हैं अथवा भोजपत्र की लंगोटी बाँध लेते हैं । मन्दिर मूर्ति वहाँ कुछ नहीं है । ऐक गुफा-सी है उसमें पहाड बर्फ ढलकर बन जाती हैं उसी को महादेव का लिंग मानकर पूजा करते हैं । उस गुफा के . 'अन्दर कबूतर' भी रहते हैं जब यात्रियों का शोर-गुल सुनते हैं तो घबड़ाकर बाहर निकल जाते हैं कि साक्षात् महादेव पार्वती कबूतर वनकर उनको दर्शन
देते हैं । श्रीनगर के अग्निकोन को एक दिन की राह पर मटन साहिव नाम ___एक कुड हिन्दुओं का तीर्थ है । उसके गिर्द इमारतें बनी हैं | तवारीखों से ____ मालूम हुआ कि किसी समय मे वहां सूर्य का एक बहुत बड़ा मन्दिर था और . । असली नाम उस स्थान का मातंड है । खंडहर उस मन्दिर का अब तक भी
खड़ा है । वहाँ वाले उसको कौरव-पांडव कहते हैं । स्थान देखने याग्य है। । पास ही एक बहुत पुराना गहरा कुंभा है । मुसलमान उसको हारूस और -मारूत का कैदखाना कहते हैं। और चाह वाविल के नाम से पुकारते
है. | काश्मीरियों के निश्चय के अनुसार मटन साहिब में श्राद्ध करने से गया - बराबर पुण्य होता है । इस इलाके के दमियान अकसर जगह पुराने समय ' की इमारतें मुसलमानों की तोड़ो हुई दिखलाई देती हैं । वहाँ वाले उन्हें । पांडवों की बनाई हुई बतलाते हैं पर बहुधा, उनमें से 'बौद्ध राजाओं की हैं।
श्रीनगर के वायुकोन अनुमान तीन दिन की राह पर ' रुसलू के गाँव में एक । _ 'कुडा है, जब पहाड़ों पर बर्फ गलती है तो जमीन के नीचे ही नीचे उस कुड में - इस जोर से पानी की बाढ़ आती है कि भंवर सो पड़ जाता है और जो कुछ र." लकड़ी पास उसकी थाह में रहता है ,सब पानी पर तैरने और घूमने लगता
है। नादान ख्याल करते हैं कि पानी में देवता उतरा। श्रीनगर से चालीस '' मील वायुकोन पश्चिम को झुकता निच्छीहमा गांव के पास एक जमीन का