Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 216
________________ २१६ - [हिन्दी-गध-निर्माण ही.राणा जी रूपनगर की राह लेंगे । हम वीच ही में बादशाह की राह रोकने के लिये रण-यात्रा कर रहे हैं। शूर-सामन्तों की सैकड़ों सजीली सेनाएँ साथ में है सही; परन्तु हम लड़ाई से अपने लौटने का लक्षण नहीं देख रहे हैं। फिर कभी भर नजर तुम्हारे चन्द्र-बदन की देख पाने की आशा नहीं है । इस वार घनघोर युद्ध छिड़ेगा। हम लोग मन मनाकर, जो जान से लड़ेंगे। हजारों हमले हड़प जायँगे । समुद्र सी सेना भी मथ डालेंगे। हिम्मत हर्गिज न हारेगे । फौलाद सी फौज को भी फ़ौरन फाड़ डालेंगे । हिम्मत तो हजार गुनी है; मगर मुगलों की मुठभेड़ में महज मुट्ठी भर मेवाड़ी वीर क्या कर सकेंगे? तो भी हमारे ढलैत, कमनैत और वानैत ढाढ़स बांध कर डट __ जायेंगे। हम सत्य की रक्षा के लिए पुर्जे पुर्जे कट जायँगें प्राणेश्वरी ! किन्तु हमको केवल तुम्हारी ही चिन्ता वेढव सता रही है। अभी चार ही दिन हुए कि, तुम सी सुहागिन दुलहिन हमारे हृदय में उजेला करने आयी है। अभी किसी दिन तुम्हें इस तुच्छ संसार की क्षणिक छाया में विश्राम करने का भी अवसर नहीं मिला है । किस्मत की करामात है ! एक ही गोटी में सारा खेल मात है ! किसे मालूम था कि एक तुम सी अनूपरूपा कोमलाङ्गी के भाग्य में ऐसा भयंकर लेख होगा ! अचानक रंग में भंग होने की आशा कभी सपने में भी न थी। किन्तु ऐसे ही अवसरों पर हम क्षत्रियों की परीक्षा हुआ करती है । संसार के सारे सुखों की तो बात ही क्या, प्राणों की भी आहुति देकर क्षत्रियों को अपने कर्तव्य का पालन करना पड़ता है।" - हाड़ी रानी हृदय पर हाथ धर कर, वोलीं-"प्राणनाथ ! सत्य और न्याय की रक्षा के लिये, लड़ने जाने के समय सहज सुलभ सासारिक सुखों की बुरी वासना को मन में घर करने देना आपके समान प्रतापी क्षत्रियकुमार का काम नहीं है । आप आपाद मनोहर सुख के फन्दे में फँस कर अपना जातीय कर्तव्य मत भूलिए । सब प्रकार की वासनानो और व्यजनों से विरक्त होकर इस समय केवल वीरत्व धारण कीजिए, मेरा मोह-छोड छोड़ दीजिए । भारत की महिलाएँ स्वार्थ के लिये सत्य का संहार करना नहीं चाहती। यार्य महिलाओं के लिये समस्त संसार की सारी सम्पत्तियों

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