Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 225
________________ अवतार ] । - રર૬ पर भी न आग लगी और न धुश्रा फैला। यह कैसा अवतार है भाई ! कौन कहता है वह अवतार है । वह तो सचमुच भण्ड ही निकला-ॉच पर चढ़ने । पर खरा सोना न निकलकर धोका 'सावित हुआ। मारो इसे, नाश हो इस ढोंगी महापुरुष का यह तो ठीक जासूस मालूम पड़ता है।" पाप का नाटक खेलने के बाद पत्तोधारियों ने ललकारा- 'फांसी का तख्ता सजाश्रो हैमलाक लायो, क्रूस मॅगाओ, जल्लाद को बुलायो। याज, उस ढोगी की जीवनी का अन्तिम पृष्ठ लिखा जायगा जो महामहिम सम्राट के विरुद बगावत कर रहा था ! जो अपने को अवतार कहकर प्रजा को राजापवित्र देवता के विरुद्ध उभाड़ रहा था। अाज देखा जायगा-कि यह कैसा अवतारी प्राणी है।" .. वह बधिक द्वारा फांसी के तख्ता पर चढ़ा दिया गया। उसके चारों ओर मूर्ख जनता की भीड़ सरकारी गोयंदों द्वारा जुटाई गई थी। इसलिए कि राजा से विरुद्ध बगावत करने का दंड देखकर लोग ठंडे पड़ जॉय ! फिर कभी किसी को अवतार मानकर, शासन के विरुद्ध विद्रोह करने की हिम्मत न करें। । उसे असहायों की तरह, फांसी के तख्ते पर निहार-मनुष्य को 'नादूगर के रूप में देखकर सन्तोष चाहनेवाली-जनता क्रोध से पागल हो उठी। क्योंकि उसी के मन्त्र के कारण, तो उनके घरों में सत्ताधारियों द्वारा आग लगाई गई थी। उसी के पाप से तो उन मूखों के परिवारी मारे, काटे और जलाये गये । श्रोह ! वह पक्का नीच था। कौन कह सकता है कि वह अवतार था। क्रोध से पागल. जन मण्डली ने उस गरीब के लाल के मुंह पर । थूका-"ले त् इसी का पात्र है ! पापी कहीं का-तू अवतार वनने चला था !! क्षोम से उन्मते मूखों ने उसे पत्थर से मारा, चाबुक से मारा, . .. गालियाँ दी और क्या क्या नहीं कहा। मगर वह अन्त तक शान्त और मुस्कराता रहा । उसने कहा भाई, मैं अवतार नहीं तुम्हारा भाई हूँ। तुम्हीं जिसे चाहो अवतार बना दो और

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