Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 230
________________ २३. - [हिन्दी-गव-निर्माब शाश्वत अानन्द का अनुभव करे। नाना प्रकार के प्राकृतिक श्यों के बाद सौंदर्य को देखकर-भी प्रेम, दया, कृतशता शक्ति, उपकार इत्यादि शाश्वत सौंदर्य की भावनाएँ अपने हृदय में लाकर वह आनन्द प्राप्त कर सकता है और अपने अन्दर बाह्याभ्यान्तिरिक सौंदर्य की वृद्धि भी कर सकता है। जैसे वाटिका अथवा तड़ागों में विकसे हुए पुषों को देखकर और उनके सौरम का. आघाण करके स्वाभाविक ही हमारे हृदय में स्नेह का विकास होता है। उगते हुए सूर्य अथवा उत्तुङ्ग शिखरों के बीच से वहती हुई गंगा के भव्य दृश्य का सौदर्य देखकर स्वाभाविक ही हमारे हृदय में शक्ति का उदय होता है विस्तृत नील श्राकाश मण्डल अथवा पारावार सागर का सौंदर्य ,देखकर हमारे हृदय में विशालता का समावेश होता है। संगीत-स्वर के सौंदर्य से हमारे हृदय में प्रेम का सञ्चार होता है । इस प्रकार जड़ सृष्टि के सौंदर्य में भी एक व्यापक ओर शाश्वत आनन्द भरा हुआ है। परन्तु कुछ दार्शनिकों के मत से उपयोगिता का भी सौंदर्य से बहुत सम्बन्ध है । निरुपयोगी चीज चाहे जितनी सौंदर्यशाली हो. पर प्रायः उसमें सौंदर्य की भावना हमको नहीं होती। इन्द्रायण के फल को केवल हटान्त के लिए ही हम सुन्दर मानते हैं । किंशुक के पुष्प में हम इतनी ही सुन्दरता मानते है कि वह हमारी आँखों को थोड़ा सा अच्छा दिखाई देता है और उससे पीला रंग निकलता है । इसके विरुद्ध दुमरे फल और फूलों को लीजिए जिनमे सुगन्ध और माधुरी इत्यादि के गुण है, वह हमारी दृष्टि मे सौंदर्य के . आदर्श हैं । प्रसिद्ध दार्शनिक साक्रेटीस कोयले को सुन्दर मानता है क्योंकि वह उसको बहुत उपयोगी समझता है । वह सौंदर्य का विचार नैतिक दृष्टि से करता है, और किसी भी चीज़ को इस कारण सुन्दर नहीं बतलाया कि वह सुन्दर दिखाई देती है, बल्कि उसके गुणों को देखकर उसमें सुन्दरता का आरोप करता है परंतु आजकल लोग कला की दृष्टि से सौंदर्य को देखने लगे है और श्चिमी देशों में तो-त्रिका की भायौंदर्य प्रदर्शिनी होने लगी है कला विशेषज्ञ जिस सुन्दरी को सर्वश्रेष्ठ निरस्त करते हैं, उसको बढ़िया इनाम मिलता

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