Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 224
________________ २२४ [हिन्दी-गद्य निर्माण हैं ! यह क्या कहता है, क्या समझता है और क्या चाहता है इसका पता लगाना, आदमी तो आदमी, परमात्मा के लिए भी सम्भव नहीं। यह विपत्ति पड़ने पर, अवतार अवतार वरावर पुकारता है; पर जव अवतार इसके बीच में ईश्वर के बरदान की तरह पाता है तव यह उसे पहचानता ही नहीं। ज्यों ज्यों उस गरीव की झोपड़ी के चिराग का महत्व और दल बढ़ने लगा त्यो त्यो उसके विरोधी भी बढ़ने लगे। उसके विरुद्ध उस देश के . विदेशी शासक तो हुए ही, साथ ही अनेक स्वदेशी ज्ञानी भी हुए। किमी ने कहा- 'वाह ! यह अवतार है । जरा इसका मुँह तो देखो न पढ़ा, न लिखा, न राजा, न सेनापति, न व्यवस्थापक, न विचारक-भला यह महापुरुष कैसे हो सकता है । अरे, सावधान ! यह विदेशियों का गुप्तचर है। प्रजा को उभाड़ कर उसे राजा की क्रोधाग्नि मे भुनवाना चाहता है । होशियारहे विद्रोह की ओर बढ़नेवालो ! यह अवतार नहीं-भण्ड है, भण्ड ।" यही अमीरों ने कहा, विद्वानों ने कहा, यही महन्तों ने कहा और - यही उन सबके मालिकों-विदेशियों ने कहा। मगर गरीबों ने, भलों ने, श्रद्धालुओं ने तो उसे पहचाना था। वे वरावर उसकी वाते मानते रहे, उसके उपदेश सुनते रहे, उसका दल बटाते - रहे और विद्रोह का सन्देश चारों ओर फैलाते रहे। आखिर सत्ताधारी पागल बिगड़े। उन्होंने उसके विरुद्ध यह या वह अपराध लगाकर उसी देश के और उसी रंग के जासूसों और गुलाम - सैनिकों की सहायता से एक दिन उसे बाध लिया राजा के विरुद्ध विद्रोह प्रचार करने के अपराध में। उसकी गिरफ्तारी के पूर्व उसके सहसाधिक . भक्त बिगड़े, सत्ताधारियों की सेना के विरुद्ध । फिर क्या था पागलों को - मांगी मुराद मिली । भूखे सैनिक कुत्ते भीड़ पर ललकार दिये गये और - सैकड़ों गरीब, निरीह सच्चे प्राणी तलगरों के घाट उतार दिये गये। "अाय ?" मूों ने मन ही मन कहा-"हमारे बच्चे सत्ताधारियों द्वारा पीस डाले गये हमारे भाइयों की गर्दनें काट डाली गई । हमारी - माताएँ और बहनें बेइज्जत की गई 'वह स्वयं बांध लिया गया और.इतने

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