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[हिन्दी-गद्य-निमान जिसे चाहो नाश के नरक मे ढकेल दो । मगर भाई, मैं सच्चा हूँ, तुम्हारा सेवक हूँ। मै अाज भी कहता हूँ-न डरो किसी मनुष्य से क्योंकि, वह केवलं तुम्हारे शरीर का शासन कर सकता है, श्रात्मा का नहीं। मत मानो शासन किसी देही का, क्योंकि उसका शासन स्वर्ग का सम्बाद नहीं, नरक-निमन्त्रस है। मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ। क्योंकि तुम भोले हो ! तुम नहीं समझ रहे हो कि तुम क्या कर रहे हो । परमात्मा तुम्हें सुबुद्धि दे तुम्हारा मंगल करें !" ___ +
+ वह हँसते-हँसते सूली पर चढ़ गया । . ___ उफ़! इतिहासों से पूछो-और- पूछो धर्म-अन्यों से ! वह- तुम्हे वताएँगे कि सूली पर चढ़ जाने के बाद लोगों ने उस गरीब की झोपड़ी के चिराग को अपना नेता माना, उपदेशक माना; त्राता माना, अवतार माना,' . ईश्वर माना।
विद्रोह हुया-उसके प्रस्थान के चन्द हफ्तों बाद ही उस परतन्त्र, देश में; और हुया उन्हीं मूखों द्वारा जिन्होंने उस महान् के मुंह पर थूका था। सत्ताधारियों के रक्त से पृथ्वी लथपथ हो उठी और पृथ्वी के दर्पण में झांककर आकाश के कपोल भी रक्त हो उठे। धू ा उठा, चिनगारियां चमकी
आग लगी, ज्वालामुखी फूटे-मगर का ? जब वह मूली,पर टॉगकर, अवतार बना दिया गया!
श्राह री दुनिया ! हाय रे उसके समझदार बच्चे !!
साहित्य और सौन्दर्य-दर्शन
[बेखक-वीधर बाजपेयी ] उपनिषदों में कहा गया है कि अानन्द से ही सव जोव पैदा हुए है। श्रानन्द ही में जीते और अानन्द ही में समाते हैं। चाहे लौकिक आनन्द लीजिये और चाहे पारलौकिक वह अानन्द कहाँ से पैदा होता है ! वास्तव