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भीष्माष्ठमी] अतः भावव्यंजना या रसव्यंजना वस्तुव्यंजना से सर्वथा भिन्न कोटि की वृत्ति है । रसव्यजना की इसी भिन्नता या विशिष्टता के बल पर 'वृत्ति-विवेक' कार महिम भट्ट का सामना किया गया था जिनका कहना था कि 'व्यंजना अनुमान से भिन्न कोई वस्तु नहीं है । विचार करने पर वस्तुव्यंजना के सम्बन्ध में भट्ट जी का पक्ष ठीक ठहरता है । व्यंज वस्तु या तथ्य तक हम वास्तव में अनुमान द्वारा ही पहुंचते हैं। पर रसव्यंजना लेकर जहाँ वे चले हैं वहाँ उनके मार्ग में बाधा पड़ी है । अनुमान द्वारा बेधड़क इस प्रकार के ज्ञान तक पहुँच कर कि "अमुक के मन में प्रेम है या क्रोध है" उन्हें फिर इस ज्ञान को "श्रास्वाद,पदवी" तक पहुँचाना पड़ा है । इस "आस्वाद पदवी तक इत्यादि का शान किस प्रक्रिया से पहुँचता है, यह सवाल ज्यों का त्यों रह जाता है। अतः इस विषय को स्पष्ट कर लेना चाहिए । या तो हम भाव या रस के सम्बन्ध में "व्यंजना" शब्द का प्रयोग न करें, अथवा वस्तु या तत्त्व के सम्बन्ध में । शब्दशक्ति का विषय बड़े महत्व का है। वर्तमान साहित्यसेवियों को इसके सम्बन्ध मे विचार-परम्परा जारी रखनी चाहिये । काव्य की मीमांसा या स्वच्छ समीक्षा के लिये यह बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
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भीष्माष्टमी
लेखक- बाबू पुरुषोत्तमदास जी टंडन] . हमारे पाठक कदाचित् जानते होंगे कि गत रविवार को भीष्माष्ठमी यी। यह वह दिवस था जिस दिन कुरुक्षेत्र की रणभूमि में शरशय्या पर लेटे हुये पितामह भीष्म जी ने अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।
___ संसार के इतिहास में महात्मा भीष्म के समान दूसरा चरित्र मिलना कठिन है। यदि समानता दिखलाई भी पड़ेगी तो केवल भारतवर्ष के इतिहास
'माघ शुक्ख १२ सं० १६५४ के "प्रभ्युदय पत्र से उद्धत ।