Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 211
________________ २११ दीनों पर प्रेम ] . . फ़कीर की सदा से तो यही मालूम हो रहा है। तो क्या हम भ्रम में ये ? अच्छा, अमीरों के शाही महलों में वह पैर भी नहीं रखता १ . मेरे लिए खड़ा था दुखियों के द्वार पर तू, मैं बाट जोहता था तेरी किसी चमन में ? हजरत खड़े भी कहाँ होने गये। वेबस गिरे हुओं के तू वीच में खड़ा था, . मैं स्वर्ग देखता था झुकता कहाँ चरन में। - तो क्या उस दीन-बन्धु को अव यही मंजूर है कि हम अमीर लोग, , धन-दौलत को लात मार कर उसकी खोज में दीन-हीनों की झोपड़ियो की खाक छानते फिरे। .. दीन-दुर्बलों को अपने असह्य अत्याचारों की चक्की में पीसनेवाला धनी परमात्मा के चरणों तक कैसे पहुंच सकता है । धनान्ध को स्वर्ग का द्वार ___ दीखेगा ही नहीं । महात्मा ईसा का वचन सत्य है “यदि तू सिद्ध पुरुष होना चाहता है, तो जा, जो कुछ धन दौलत - तेरे पास हों; वह सब बेचकर कंगालों को दे दे। तुझे अपना खज़ाना स्वर्ग मे सुरक्षित रखा मिलेगा। तव श्रा और मेरा अनुयायी हो जा। मैं तुझसे सच कहता हूँ, कि धनवान् के स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अपेक्षा ऊँट का सुई के छेद में निकल जाना कहीं आसान है । सहजोबाई भी यही वात कह रही है वड़ा न जाने पाइहै साहिब के दरवार । द्वारे ही सू लागिहै 'सहजो मोटी मार॥ किसानों और मजदूरों की टूटी-फूटी झोपड़ियों में ही प्यारा गोपाल बंशी बजाता मिलेगा । वहाँ जायो और उसकी मोहिनी छबि निरखो। जेठ बैसाख की कड़ी धूप में मजदूर के पसीने की टपकती हुई बूदों में उस प्यारे राम को देखो । दीन दुबलों की निरास-भरी अॉखों में उस प्यारे कृष्ण को

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