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मुण्डमाल ] . जाता है। दीन की मर्म मेदिनी श्राह में उस पागल को अपने प्रियतम का मधुर श्राहान सुनाई देता है । इधर वह अपने दिल का दरवाजा दीन होनों । के लिए दिन-रात खोले ,खड़ा रहता है, और उधर परमात्मा का हृदय-द्वार . उस दीन-प्रेमी का स्वागत करने को उत्सुक रहा करता है। प्रेमी का उदय दीनों का भवन है, दीनों का हृदय दीनबन्धु भगवान का मन्दिर है और "भगवान् का हृदय प्रेमी का वास-स्थान है । प्रेमी के हृद्दश में दरिद्रनारायण ही एक-मात्र प्रेम-पात्र है । दरिद्रसेवा ही सच्ची ईश्वर-सेवा है। दीन-दयालु
ही श्रास्तिक है, ज्ञानी है; भक्त है और प्रेमी है । दीन दुखियों के दर्द का ___गर्मी ही महात्मा है । गरीव की पीर जाननेहारा ही सच्चा पीर है । कबीर ने ___ कहा है--
कविरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर । ' जो पर-पीर न जानई, सो काफिर बेपीर ।
मुण्डमाल [ लेखक-बाबू शिवपूजन सहायजी ] आज उदयपुर के चौक मे चारों ओर बड़ी चहल-पहल है । नवयुवकों मे नवीन उत्साह उमड़ उठा है । मालूम होता है कि, किसी ने यहाँ के कुत्रों मे उमग की भग घोल दी है । नवयुवकों की मूछों में ऐंठ भरी हुई है।
आँखों में ललाई छा गयी है । सव को पगड़ी पर देशानुराग की कलॅगी लगी हुई है । हर तरफ से वीरता की ललकार सुन पड़ती है। वॉ के-लड़ाके वीरों के कलेजे रणभेरी सुनकर चौगुने होते जा रहे हैं । नगाड़ों से तो नाकों मे दम हो चला है । उदयपुर की धरती, धौसे की धुधुकार से डगमग कर रही है। रणरोप से भरे हुए घोड़े डंके की चोट पर उड़ रहे हैं। मतवाले हाथी हर ओर से, काले मेघ की तरह, उमड़े चले आते हैं । घंटों की आवाज से । समूचा नगर गूंज रहा है । शस्त्रों की झनकार और शंखों के शब्दों से दसों