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समाधान ]
१६ नहीं है। और सत्य भी नहीं है । तात्पर्य, समष्टिरूप में है भी, । यही बीच का मार्ग है।। दण्डनायक क्यों न होने दोगे ! अधार्मिक शासक ! क्यों न होने दोगे ?
आज गुप्त षड्यन्त्रों से गुप्त साम्राज्य शिथिल है, कोई, क्षत्रिय
राजा नहीं जो ब्रोक्षण के धर्म की रक्षा कर सके, जो धर्माचरण , " के लिए अपने राजकुमारों को तपस्वियों की रक्षा में नियुक्त करे!
र श्रोह ! इतना नीचे ! धर्मदेव , तुम कहाँ हो? धातुसेन-सप्तसिन्धु-प्रदेश नृशंस हूणों से पदाक्रान्त है, जाति भीत और त्रस्त
है, और उसका धर्म असहाय अवस्था में पैरों से कुचला जा रहा है। कहिये क्यो र क्षत्रिय गजा, धर्म का पालन कराने वाला राजा, पृथ्वी पर नहीं रह गया । आपने इसे विचारा है, सोचा है। नहीं । क्यों ब्राह्मण टुकणों के लिये अन्य लोगों की उपजीवका छीन रहे हैं ? क्यों एक वर्ण के लोग दूसरों की अर्थकरी वृत्तियाँ ग्रहण करने लगे हैं ! लोभ ने तुम्हारे धर्म का व्यवसाय चला दिया ! दक्षिणाओं की योग्यता से--स्वर्ग, पुत्र, धन, यश, विजय और मोक्ष तुम बेचने लगे! कामना से अन्धी जनता के विलासी समुदाय के ढोंग के लिए, तुम्हारा धर्म प्रावरण हो गया है । जिस धर्म के आचरण के लिये-पुष्कल स्वर्ण चाहिए, वह धर्म जन-साधारण को सम्पत्ति नहीं हो सकता ! फिर अनधिकारियों के दूसरे धर्म का आश्रय दढना पड़ा, और प्रार्य राष्ट्र के नाश का सुगम पथ तुमने संकेत द्वारा वतला दिया ! धर्म-वृक्ष के चारों ओर, स्वर्ग के काटेदार जाल फैलाए गए हैं और व्यवसाय की ज्वाला से वह दग्ध हो रहा है ! जिन धनवानों के लिए तुमने धर्म को सुरक्षित रक्खा उन्होंने समझा कि धर्म धन से खरीदा जा सकता है, इसलिए धनोपार्जन मुख्य हुआ, और धर्म गौण । जो पारस्य देश की मूल्यवान् मदिरा रात को पी सकता । है; वह धार्मिक बने रहने के लिए, प्रभात में एक गो-निष्क्रय भी