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- विश्व-प्रेमी कवि. ]
२०. . - 'विश्वास पहले जैसा ही अटल बना रहा कि उसकी रचना केवल उन लोगों...
के लिए मनोरंजन का साधन हो सकती है जो सांसारिक ऐश्वर्य सागर में , भोग की सेज पर उसी प्रकार शयन कर रहे हैं जिस प्रकार विष्णु भगवान् वीर सागर में शेषनाग पर । मुखमरी, मूर्ख और आत्मघातिनी हिन्दू जाति के लिए विश्व प्रेम का सन्देश केवल प्रलय का हरकारा हो सकता है, और कुछ .. नहीं।
एक दिन गाँव के कुछ लोग, जिन पर उस कवि के बड़े नाम का जादू = पूरा-प्रभाव जमा चुका था, उस कवि को सारहीन कविता खाई में गोते लगा . लगा कर बड़े बड़े विचित्र अर्थ-घोघे निकाल रहे और उसके सिद्धान्तों पर
आपस में वहस कर रहे थे कि इतने में गुन्डों ने उनके घरों में घुस घुसकर . उनके सामने ही उनकी बहू-बेटियों को ले लेकर भागना शुरू किया। विश्व'प्रेमी कवि के उपासक अपनी काव्यसमीक्षा में ही लीन रहे। स्त्रियों के रोनेझीखने पर पहले तो उनका ध्यान ही नहीं गया, बाद को, जब वहे करण क्रन्दन उनके कर्णकुहरों में प्रवेश करके उनके रसिक हृदय के पास जबर्दस्ती जा पहुँचा तब उनकी नाजुकता की निद्रा कुछ भग हुई और उन्होंने गुडो की हृदय-हीनता की पूरी निन्दा की कि कम्बख्तों ने दिव्य काव्यचर्चा में बिन्न डाल कर विश्व-प्रेम की बनी बनाई भावना को विगाड़ने का बे-मौके प्रयत्न किया । अन्त में यह देख कर कि विश्व-प्रेमी गुंडों ने उनकी बहू-बेटियों को, अपने तनिक से स्वार्थ से प्रेरित होकर, बलपूर्वक अपना लिया, उन्होंने 'पुलिस' 'पुलिस' चिल्लाना और अदालत के द्वार खटखटाना प्रारम्भ किया। अहा ! विश्व-प्रम का क्या ही दिव्य दृश्य था।
- मैं चाहा कि उस विश्व-कवि' को इस बात की सूचना दूं, पर एक मित्र से ात हुआ कि वह तो विश्वभर में घूम घूमकर चन्दा बटोर रहा है। विश्व-प्रम का यह क्रियात्मक रूप देखकर मुझे उसकी अद्भुत रचना, का , रहस्य' समझने में बड़ा सहारा मिला।