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सरल प्रेमी कवि] : बोरकर विश्वात्मा में लीन हो जाओ, किसी से राग-द्वेष न करी; प्रेम दी शामन का मूल-ईश्वरं का स्वरूप है उसे पहचानो; सब सष्टि के साथ ही अपनी कल्याण कामना करो, छोटे मोटे दुखों की परवा न करो:. उस प्रमु "विश्व व्यापिनी महाज्योति के आह्लाद-सागर में डब जाओ, लीन हो गो, विलीन हो जात्रो, तल्लीन हो जाओ, इसी का नाम मुक्ति है; क्षुद्र कामनामों का नाम है संसार ।
संदेरा सचमुच दिव्य था। मैंने इस पर विचार किया। मैं कवि के पैरों पर गिर पड़ा। उसने अपने कोमल करों से उठाकर मुझे अपने सामने बैठाया।
मैंने कहा-आप विश्व-प्रेम का जा दिव्य गान सुनाते हैं, उससे हमारे हृदय अानन्द से नाचने लगे है; परन्तु बरसाती वीरबहूंटी या ऊनवाली मेड़ के लिए विश्व-प्रेम के सिद्धान्तों का क्या महत्त्व ! सुन्दर वीरवहूटी को लोग, अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए जीवित ही सुखाकर मार डालते हैं; भेड़ को भी भूर डालते और अन्त में खा लेते हैं । यों दोनों का अन्त होता है।
कवि-वीरबहूटी के लिए इससे अधिक सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है कि परोपकार के लिए. वह अपना सुन्दर मखमली शरीर न्योछावर कर दे ! भेड़ को भी ऐसी ही समझना चाहिए, और अनुदार होकर, मूड़ने या मारने वाले की निन्दा न करनी चाहिए। ____ मैं-श्रापका यह विश्व-प्रेम का सन्देश विश्व-द्रोहियों के काम का हो सकता है जो अपने तनिक से स्वार्थ के लिए हरे-भरे देशों को उजाडते और सीधी-सच्ची जातियों को नष्ट करते चले जाते हैं। जो विश्वद्रोही होकर किसी का कुछ विगाड़ नहीं सकता, और विश्वप्रेमी बनकर किसी का कुछ बना नहीं सकता, हम सरीखे, ऐसे दुर्बल व्यक्ति के द्रोह या प्रेम का मूल्य ही कितना? - कवि-द्रोह विष है, प्रेम अमृत है। द्रोह दुर्गन्ध है, प्रेम सुगन्ध । कांटे द्रोह मय होते हैं, फूल प्रेममय । दोनों संसार में आते और रहते हैं। कांटों को निन्दा होती है फूलों की प्रशंसा । एक जूते के तले से कुचला जाता है, दूसरा देव शीश पर चढ़ता है।