Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ १४६ मजदूरी और प्रेम ], का राज्य होता है उसका हर कोई हर किसी को विना उसका नाम-धाम पूछे 'ही पहचानता है; क्योंकि पूछने वाले का कुल और उसकी जात वहाँ वही होती है जो उसकी जिससे, कि वह मिलता है। वहाँ सब लोग एक ही मातापिता से पैदा हुए भाई-बहन हैं। अपने ही भाई बहनों के माता-पिता का नाम पूछना क्या पागलपन से कम समझा जा सकता है ? यह सारा संसार एक • कुटुम्बवत् है । लॅगड़े, लूले, अंधे और वहरे उसी मौलसी घर की छत के नीचे रहते हैं जिसकी छत के नीचे बलवान, निरोग और रूपवान् कुटुम्बी रहते हैं । मूढ़ों और पशुओं का पालन-पोषण बुद्धिमान् , सबल और निरोग ही तो करेंगे अानन्द और प्रेम की राजधानी का सिंहासन सदा से' प्रेम और मजदूरी के ही कधों पर रहता आया है । कामना सहित होकर भी मजदूरी निष्काम होती है; ' क्योंकि मजदूरी का बदला ही नहीं। निष्काम कर्म करने के लिए जो उपदेश दिये जाते हैं उनमे अभावशील वस्तु सुंभावपूर्ण मान ली जाती है। पृथ्वी अपने ही लक्ष पर दिन रात धूमती है यह पृथ्वी का स्वार्थ कहा जा सकता है। परन्तु उसका यह धूमना सूर्य के इर्द गिर्द घूमना तो है और सूर्य के इर्द गिर्द घूमना सूर्यमंडल के साथ आकाश मे एक सीधी लकीर पर चलना है । अन्त मे, इसका गोल चक्कर खाना सदा ही सीधा चलना है, इसमे स्वार्थ का, ।। • अभाव है। इसी तरह मनुष्य की विविध कामनाएँ उसके जीवन को मानों उसके स्वार्थ रूपी धुरे पर चक्कर देती हैं, परन्तु उसका जीवन अपना तो है ही नहीं, वह तो किसी आध्यात्मिक सूर्यमडल के साथ की चाल है और अन्ततः यह चाल जीवन का परमार्थ रूप है। स्वार्थ का यहाँ भी अभाव है। जब स्वार्थ कोई वस्तु ही नहीं तब निष्काम और कामनापूर्ण कर्म करना दोनों ही एक बात हुई । इसलिए मजदूरी और फकीरी का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है । । मजदूरी करना जीवनयात्रा का आध्यात्मिक नियम है । जोन श्राव आर्क (Joan of Arc) की फकीरी और भेड़ चराना, टालस्टाय का त्याग और जूते गॉठना, उमर खैयाम का प्रसन्नतापूर्वक तम्बू सीते फिरना, खलीफा उमर का अपने रंगमहलों मे चटाई,आदि बुनना, ब्रह्मज्ञानी कवीर

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237