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[हिन्दी-गद्य-निर्माण संसार मे सभी वार्ते प्राकृतिक नियमानुसार चलती हैं। जैसी जैसी आवश्यकतायें लोगों को होती जाती हैं, वैसी वस्तुओं की उन्नति इसमें आप से आप होती जाती है । हमारे यहाँ जब तक हमारा योरप से संघट्ट नहीं , हुया था तब तक शिल्प व्यापार की उचित उन्नति नहीं हुई थी। अब भी । यह उन्नति हुई नहीं है, किन्तु अव हमारी आँखें खुल रही हैं । इसलिए भाँतिभांति के नवागतभावों और विचारों के व्यक्त करने की हमें आवश्यकता पड़ी है और पड़ती जाती है। जिन लोगों ने अब तक ऐसे भावों को नहीं जाना है उनको इस लेख के विषय पर ही कुछ आश्चर्य हो मकता है, क्योंकि उन्होंने हिन्दी में भावव्यंजकता की कमी का ही अनुभव नहीं किया है । इसलिए सांसारिक उन्नति भी भावव्यंजकता की आवश्यकता दिखलाकर हमारी भाषा की उन्नति करेगी। यदि स्कूलों, कालेजों आदि में भूगोल, खगोल विज्ञान, दर्शन आदि के विषय हिन्दी में पढ़ाये जाने लगे, तो हमारी भावव्यंजकता की भारी वृद्धि हो सकती है क्योंकि तब ऐसे नये-ग्रन्य प्रचुरता से अवश्य वनने लगेंगे । सव बातों का निचोड़ यह है कि हिन्दी की भावव्यंजक देशोन्नति और त्वदेश प्रेम के साथ बढ़ेगी।
भारतीय साहित्य की विशेषताएँ
[लेखक-बाबू श्यामसुन्दर दास ], , , समस्त भारतीय साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता उसके मूल में स्थित समन्वय की भावना है। उसकी यह विशेषता इतनी प्रमुख तथा मार्मिक है कि केवल इसी के वल पर संसार के अन्य साहित्यों के सामने वह अपनी । मौलिकता की पताका फहरा सकती और अपने स्वतंत्र अस्तित्व की सायं- ' कता प्रमाणित कर सकती है । जिस प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भारत के शान, भक्ति तथा कर्म के समन्वय की प्रसिद्धि है तथा जिस प्रकार वर्ण एवं आश्रम चतुष्टय के निरूपण द्वारा इस देश में सामाजिक समन्वय का सफल प्रयास