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[हिन्दी-गद्य-निर्माण और रैदास का शूद्र होना, गुरु नानक और भगवान् श्रीकृष्ण का मूक पशुत्रों को लाठी लेकर हॉकना-सच्ची फकीरी का अनमोल भूषण है।
समाज को पालन करनेवाली दूध की धारा एक दिन गुरु नानक यात्रा करते-करते भाई लालो नाम के एक बढ़ई के घर ठहरे । उस गाँव का भागो नामक रईस बड़ा मालदार था। उस दिन भागो के घर ब्रह्मभोज था । दूर-दूर से साधु आये हुए थे। गुरु नानक का आगमन सुनकर भागो ने उन्हें भी निमन्त्रण भेजा। गुरु ने भागो का अन्न खाने से इनकार कर दिया ! इस बात पर भागो को वड़ा क्रोध आया। उसने गुरु नानक को बलपूर्वक पकड़ मॅगाया और उनसे पूछाआप मेरे यहाँ का अन्न क्यों नहीं ग्रहण करते ? गुरुदेव ने उत्तर दियाभागो, अपने घर का हलवा पूरी ले आयो तो हम इसका कारण बतला दें। वह हलवा-पूरी लाया तो गुरु नानक ने लाली के घर से भी उसके मोटे अनं की रोटी मंगवाई । भागो की हलवा-पूरी उन्होंने एक हाथ में और लाली की मोटी रोटी दूसरे हाथ में लेकर दोनों को दबाया तो एक से लोहू टपका और दूसरी से दूध की धारा निकली। वावा नानक का यही उपदेश हुश्रा । जो धारा भाई लालो की मोटी-रोटी से निकली थी वही समाज का पालन करनेवाली दूध की धारा है । यही धारा शिव जी की जटा से और यही धारा मजदूरों की उँगलियों से निकलती है।
मजदूरी करने से हृदय पवित्र होता है; संकल्प दिव्य लोकान्तर में - विचरते हैं । हाथ की मजदूरी ही से सच्चे ऐश्वर्य की उन्नति होती है । जापान में मैंने कन्याओं और स्त्रियों को ऐसी कलावती देखा है कि वे रेशम के छोटेछोटे टुकड़ों को अपनी दस्तकारी की बदौलत हजारों की कीमत का बना देती हैं; नाना प्रकार के प्राकृतिक पदाथों और दृश्यों को अपनी सुई से कपड़े के ऊपर अंकित कर देती है । जापान-निवासी कागज, लकड़ी और पत्थर की बड़ी अच्छी मूर्तियों बनाते हैं । करोड़ों रुपये के हाथ के बने हुए जापानी खिलौने विदेशों में विकते हैं । हाथ की बनी जापानी चीजें मशीन से बनी हुई चीजों को