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.. मजदूरी और प्रेम ]
१५३ __ रहे हैं, मजदूरों के हाथ-पांव फट रहे हैं। लहू चल रहा है । सरदी से ठिठुर रहे .
है। एक तरफ दरिद्रता का अखण्ड राज्य है, दूसरी तरफ अमीरी का चरम दृश्य; परन्तु अमीरी भी मानसिक दुःखों से विमदित है । मशीनें वनाई तो गई थीं मनुष्यों का पेट भरने के लिए-मजदूरों को सुख देने के लिए-परन्तु वे काली-काली मशीनें ही काली वनकर उन्हीं मनुष्यों का भक्षण कर जाने के लिए मुख खोल रही हैं । प्रभात होने पर ये काली-काली बलाएँ दूर होंगी।' मनुष्य के सौभाग्य का सूर्योदय होगा।
' शोक का विषय है कि हमारे और अन्य पूर्वी देशों में लोगों को मजदूरी से तो लेशमात्र भी प्रम नहीं, पर वे तैयारी कर रहे हैं पूर्वोक्त काली मशीनों का आलिंगन करने की । पश्चिम वालों के तो ये गले पड़ी हुई वहती नदी की काली कमली हो रही हैं । वे छोड़ना चाहते हैं; परन्तु काली कमली उन्हे नहीं छोड़ती । देखेंगे, पूर्व वाले इस कमली को छाती से लगाकर कितना श्रानन्द अनुभव करते हैं । यदि हममें ग हर आदमी अपनी दस उगलियों की सहायता से साहस पूर्वक अच्छी तरह काम करे तो हमी, मशीनों की कृपा से बढ़े हुए पश्चिम वालों को, वाणिज्य के जातीय सग्राम मे सहज ही पछाड़ सकते हैं । सूर्य तो सदा पूर्व ही से पश्चिम की ओर जाता है। पर पात्रो पश्चिम में 'पाने वाली सभ्यता के नये प्रभाव को हम पूर्व से भेजें।
' इजनों की वह मजदूरी किस काम की जो बच्चों, खियों और कारीगरों को ही भूखा, नंगा रखती है, और केवल सोने, चाँदी, लोहे आदि धातुओं का ही पालन करती है । पश्चिम को विदित हो चुका है कि इनसे मनुष्य का दुःख दिन पर दिन बढ़ता है । भारतवर्ष जैसे दरिद्र देश मे मनुष्य के हाथों की मजदूरी के बदले कलों से काम लेना काल का डका वजाना होगा। दरिद्र प्रजा और भी दरिद्र होकर मर जायगी। चेतन से चेतन की वृद्धि होती है । मनुष्य को तो मनुष्य ही सुख दे सकता है । परस्पर की, निष्कपट सेवा ही से मनुष्य-जाति का कल्याण हो सकता है । धन एकत्र करना तो मनुष्य जाति के आनन्द-मगल का एक साधारण-सा और महा तुच्छ उपाय है । धन की पूजा करना नास्तिकता है; ईश्वर को भूल जाना है; अपने भाई वहनों तथा मान