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[हिन्दी-गद्य-निर्माण बात नहीं है और न उनमें कोई प्रमाण ही है! . .
- हमारे दूरदर्शी महर्षि भारत के मन्द भाग्य को पहले ही अपनी दिव्य . दृष्टि से देख चुके थे कि एक दिन ऐसा आवेगा कि न कोई वेद पढ़ेगान - वेदांग, न कोई इतिहास का अनुसन्धान करेगा और न कोई पुराण ही सुनेगा। सब अपनी क्षमता को भूल जायँगे । देश श्रात्म-ज्ञान-शून्य हो जायगा , इसलिए उन्होंने अपने बुद्धि-कौशल से हमारे जीवन के साथ 'राम नाम' का दृढ़ सम्बन्ध किया था। यह उन्हीं महर्षियों की कृपा का फल है कि जो देश अपनी शक्ति को, तेज को, बल को, प्रताप को, बुद्धि को और धर्म को-अधिक क्या जो अपने स्वरूप तक को भूल रहा है, वह इस शोचनीय दशा में भी राम नाम को नहीं भूला है । और जब तक , 'राम' स्मरण है, तब तक हम भूलने पर भी कुछ भूले नहीं हैं ।
महाराज दशरथ का पुत्रस्नेह, श्रीरामचन्द्र जी की पितृभक्ति, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की भ्रातृभक्ति, भरत जी का स्वार्थत्याग, वशिष्ट जी का प्रताप, विश्वामित्र का अादर, ऋष्यशृंग का तप, जानकी जी का पातिव्रत, हनुमान जी की सेवा, विभीषण की शरणागति और रघुनाथ जी का कठोर कर्तव्य किसको स्मरण नहीं है ? जो अपने "रामचन्द्र' को जानता है वह अयोध्या, मिथिला को कव भूला हुआ है । वह राक्षसों के अत्याचार, ऋषियों के तपोबल और क्षत्रियों के धनुर्वाण के फल को अच्छी तरह जानता है । उसको जव राम. नाम का स्मरण होता है और जब वह 'रामलीला' देखता है तभी यह ध्यान । उसके जी में प्राता है कि रावण आदि की तरह चलना न चाहिये, रामादिक के समान प्रवृत्ति होना चाहिए।'
वस इसी शिक्षा को लक्ष्य कर हमारे समाज में राम नाम' का आदर वढ़ा। ऐसा पावन और शिक्षाप्रद चरित्र न किसी दूसरे अवतार का और न किसी मनुष्य को ही है ! भगवान रामचन्द्र देव को हम मर्त्यलोक का राजा नहीं समझते, अखिल ब्रह्माण्ड का नायक समझते हैं । यो तो श्रादरणीय रघुवंश में सभी पुण्यश्लोक महाराज हुए, पर हमारे महाप्रभु 'राम' के समान सर्वत्र रमणशील अन्य कौन हो सकता है ? मनुष्य कैसा ही पुरुपोत्तम क्यों