________________
१२८
[हिन्दी-गद्य-निर्माण हो-वह अपने मन के भाव को इस तरह प्रकट करे जिसमे पढ़ने या सुनने वाले के हृदय में कोई विकार जागृत, उत्तेजित या विकसित हो उठे। विकारों का उद्दोपन जितना ही अधिक होगा कवि की कविता उतनी ही अधिक अच्छी समझी जायगी। यह भी न हो तो उसकी कविता सुनकर श्रोता का चित्त तो कुछ चमत्कृत हो । यदि कवि मे इतना सामर्थ्य नहीं कि वह दूसरों के हृदयों को प्रभावान्वित कर सके तो कम से कम उसे अपनी बात ऐसे शम्दा में तो जरूर ही कहनी चाहिए जो कान को अच्छी लगे । कथन में लालित्य होना चाहिए, उसमें कुछ माधुर्य होना चाहिए। कविता के शास्त्रीय लक्षणों की परवा न करके जो कवि कम से कम इन तीनों गुणों में से सबके न सही, एक ही दो के साधन में सफल होने की चेष्टा करेंगे उन्हीं की कविता, न्यूनाधिक अश में. कविता कही जा सकेगी।
"श्रावेहयात' के लेखक प्रोफेसर आजाद ने संस्कृत भाषा में लिखे गवे साहित्यशास्त्र विषयक ग्रन्थों का अध्ययन न किया था। पर ये वे प्रतिभावान् , सहृदय और काव्यप्रेमी । इसी से उन्होंने छोटी-छोटी दो ही सतरों में सत्कविता का कैसा अच्छा" निरूपण: किया-निरूपण क्या किया है, परमात्मा से उसकी प्राप्ति के लिए प्रार्थना की है । वे कहते हैं
है इल्तिजा यही कि अगर तू करम करे ।
वह बात दे जवाँ में कि दिल पर असर करे ।। देखिये, उन्हें माल, मुल्क, प्रभुता, महत्ता किसी की भी इन्छा नहीं। इच्छा सिर्फ यह है कि जो कुछ वे कहें उसका असर सुनने वाले के दिल पर पड़े । सत्कविता का सबसे बड़ा गुण-सबसे प्रधान लक्षण-यही है।
सत्कवियों की वाणी मे अपूर्व शक्ति होती है। वही श्रोताओं और पाठकों को अभिलपित दिशा की ओर खींचती और उद्दिष्ट विकारों को उन्माजिन करती है । असर पैदा करना-प्रभाव जमाना-उसी का काम है। सत्कवि अपनी कविता के प्रभाव से रोते हुों को हँ सा सकता है, हौंसते हुओं को ला सकता है,भीरुओं को युद्ध-वीरवना सकता है, वीरों को भयाकुल और स्त कर सकता है , पाषाण-हृदयों के भी मानस में दया का संचार कर सकता