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रामलीला ]
१३: - बातें भी इनके ध्यान में नहीं आती। कविता, का सबसे बड़ा गुण है उसकी
प्रासादिकता । वही जब नहीं तब कविता सुनकर श्रोता रीझ किस तरह सकेंगे ' और उसका असर उन पर होगा क्या नाक ! यदि कोई यह कहे कि ये
नवयुवक कवि परमात्मा के रहस्यों का परोक्ष पर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करके अपनी कविता में अपने उन अनुभवों को प्रकट करते हैं तो ऐसा कहना या समझना उस परमात्मा की विडम्बना करना है।
कविजन विश्वास रखें, कवियों के इस किङ्कर ने इस लेख में कोई बात द्वेष-बुद्धि से नहीं लिखी। जो कुछ उसने लिखा है, हितचिन्तना ही की दृष्टि से लिखा है। फिर भी यदि उसकी कोई बात किसी को बुरी लगे तो वह उसे उदारता-पूर्वक क्षमा कर दे
श्रानन्दमन्थर पुरन्दरसुक्तमाल्यं मौलो हठेन निहितं महिषासुरस्य । पादाम्बुजं भवतु से विजयायमञ्ज मञ्जीरशिक्षितमनोहरमम्बिकायाः।
महिषासुर के सिर ने जिसकी कठोर ठोकर खाई है और श्रानन्दमग्न पुरन्दर ने जिस पर फूल माला चढ़ाई है; नूपुरों की मधुर-ध्वनि करनेवाला, भगवती अम्बिका का वही पादपद्म, हिन्दी के छायावादी तथा अन्य कवियों को इतना बल दे कि वे अपने असदिचारों को हराकर उन पर सदा विजयप्राप्त करते रहें । अन्त मे इस किङ्कर की यही कामना है।
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रामलीला
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लेखक-पं० माधवप्रसाद मिश्र] म आर्य वंश के धर्म-कर्म और भक्ति भाव का वह प्रवल प्रवाह, जिसने एक दिन जगत् के बड़े-बड़े सम्मार्गविरोधी भूधरों का दर्प दलन कर
उन्हें रज में परिणत कर दिया था और इस परम पवित्र वंश का वह विश्वमोरव्यापक प्रकाश, जिसने एक समय जगत् में अन्धकार का नाम तक न छोड़ा