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[हिन्दी-गद्य-निर्माण
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वह भूमि थी वैसी ही उसके लिये यह नदी रची न बहुत चौड़ी न सैकड़ी,जल गहरा, मीठा, ठढा और निर्मल न उसमे ऐसा तोड़ कि नाव को खतरा हो न ऐसा बंधा हुआ जिसमें कि गदा हो जावे न यह दर्या कभी बहुत बढ़ता है न घटता कनारे भी न बहुत ऊँचे हैं न बहुत नीचे कहीं हाथ कहीं दो हाथ परन्तु बालू का नाम नहीं। पानी के लव तक फूल खिले हुये हैं और दरख्त सायादार और मेवादार दुतरफा इतने खड़े हैं और उनको टहनियाँ इतनी दूर तक पानी पर झुकी हुई हैं कि नाव पर बैठ कर आराम से छाया मे चले जात्रों और बैठे ही बैठे मेवे तोड़ो और खाओ। कहीं वेदनजनूं पानी मे झुके हैं कहीं चनार जो बहुत बड़े दरख्त और जिनकी छाव बहुत धनी और ठंढी होती है पन्ने का चतर-सा वांधे खड़े हैं । कही सफेदे के दरख्त जो सर्व की तरह सांधे और उससे भी अधिक ऊँचे और सुन्दर होते हैं कतार की कतार जमे है और कहीं उनके बीच में गांव और कसवे वसते हैं । दर्या के बाढ़ की दहशत न रहने से वहाँ वाले अपने मकानों की दीवारें ठोक पानी के किनारे से, उठाते हैं जिस में नाव उनके दर्वाजों पर जा लगे। नाव की सवारी यहाँ वहुत है और उसी से सारे काम निकलते हैं सब मिलाकर इस इलाके में अनुमान दो हजारं नाव चलती होंगी पर नाव भी कैसी सबुक हलकी साफ खूबसूरत हवादार नाम उनका परदा । यथानामस्तथागुणः । वैरीनाग अर्थात् जिस जगह से यह नदी निकली है वह भी दर्शनीय है। एक पहाड़ की जड़ में मेवों के जगल के दर्मियान एक अष्टकोन पच्चीस फुट गहरा कुड है घेरा उसका अनुमान अढाइ सौ हाथ होगा यानी ठंढा और निर्मल । मछलियाँ बहुत, गिर्द, इमारत बादशाही बनी हुई निदान इस कुंड मे पानी उबलता है और उससे जो नहर बहती है वही आगे जाकर और दूसरे सोतों से मिलकर वितस्ता हो गई हैं । दो चार ब्राह्मण उस जगह पर रहा करते है क्यों कि हिन्दुओं का तीर्थ है । स्थान बहुत एकान्त रम्य और मनोहर है। सिवाय इनके उस इलाके में और भी बहुतेरे कुड और सोते हैं जिनसे नदी, और नहरें इस इफरात से वहती हैं कि सारी खेतियाँ जो बहुधा धान की होती। उन्हीं के पानी से सिंचती हैं । छोटे कुड को वहाँ नाग और बड़ों को इल