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( ३५ ) प्रभावशाली बनाने में अधिक पटु हैं । टडन जी हिन्दी के इतने अधिक ' पक्षपाती हैं कि शास्त्रों तथा धार्मिक कर्मकाण्ड के संस्कृत मत्रों को भी हिन्दी, ।
रूप देकर प्रचलित करना चाहते हैं । आपका यह मत है कि सध्या इत्यादि । धार्मिक कर्म और विवाह इत्यादि सस्कार हिन्दी भाषा के ही द्वारा होने चाहिए; और आप स्वयं भी इस पर अमल करते हैं । भाषा-शैली में लम्बे-लम्बे वाक्य लिखने के टडने जी विशेष पक्षपाती नहीं है , वरन् मुहाविरेदार-सुसंस्कृत
छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग श्राप उचित समझते हैं । व्याकरण पर टंडन जी : ' का अधिकार है, और वे व्याकरण-संम्मत भाषा अधिक पसन्द करते हैं । फिर
भी आपकी राय है कि राष्ट्रीय भाषा की दृष्टि से यदि हिन्दी व्याकरण - कुछ जटिल बंधनों से मुक्त रहे, तो इसके प्रचार में विशेष सुविधा होगी। हिदी।'
को न्यावहारिक भाषा बनाने, उसे सार्वजनिक रूप देने और राष्ट्र भाषा के ___पद पर प्रतिष्ठित कराने के उद्योग मे 'टंडन जी का विशेष और महत्वपूर्ण, 1 स्थान है।
प्रेमचन्द ' ' उपन्यास और कहानी क्षेत्र में स्वर्गीय प्रेमचन्द जी का स्थान उच्च- । कोटि का है । यो तो उपन्यास को रचना भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय से ही प्रारम्भ हो गई थी; किन्तु उसका व्यापक स्वरूप श्री प्रेमचन्द जी की ही रचनाओं के द्वारा प्राप्त हुआ। ज्यों-ज्यों शिक्षा का प्रचार बढ़ा त्यों-त्यो उपन्यासरचना में भी परिवर्तन हुा । पहले कथानक और विचित्रता की ही दृष्टि से उपन्यासों की रचना होती थी, किन्तु श्री प्रेमचन्द जी ने मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से उसे स्थायी रूप दिया । 'सेवासदन', 'प्रेमाश्रम', 'रगभूमि' 'गवन' 'गादान', इत्यादि उपन्यासों तथा 'प्रेमद्वादशी', . 'प्रेमपचीसी आदि कहानी-संग्रहों से प्रेमचन्द जो की वस्तु, भावावेश. भाषा, चरित्र-चित्रण तथा कथोपकथन की प्रौढता का ज्ञान प्राप्त होता है। इस दृष्टिकोण से प्रेमचन्द जी हिन्दी के प्रथम मौलिक उपन्यासकार हैं । प्रेमचन्द जी प्रथम उर्दू मे लिखते थे । इसलिए हिन्दी के क्षेत्र में आने पर भी उनकी