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। । २२ ) - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इस समय हिन्दी गद्य निर्माण में दो शैलियों का रूप उपस्थित था। एक अरबी-फारसी से युक्त था, दूसरी विशुद्ध हिन्दी शब्दों के प्रयोग के पक्ष में थी। किसी निश्चित शैली की पुष्टि नहीं हुई थी। इस उलझन को सुलझाने का काम भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया। उन्होंने यह निश्चय किया कि ऐसे मार्ग का अवलम्बन करना चाहिए जो अरबी-फारसी और संस्कृत के कठिन शब्दों से युक्त न हो । इसलिए इन्होंने मध्य मार्ग पर चलकर अपनी नवीन गद्यशैली का निर्माण किया । मध्यमार्ग के इस सिद्धान्त का स्वरूप उनकी प्रायः सभी रचनाओं से स्पष्ट प्रकट होता है। भारतेन्दु की रचना-शैली में अरबी-फारसी के कठिन शब्द प्रायः नहीं मिल ते । इसके सिदा सस्कृत के तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिकता से मिलता है । परिणाम स्वरूप इनकी भाषा व्यावहारिक और मधुर है । लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग ले भाषा
और भी ललित हो गई है । साथ ही भाषा की रोचकता बढ़ाने के लिये उसमें हास्य और व्यंग की पुट भी मौजूद है । भारतेन्दु की इस शैली के प्रचार । में उनके नाटकों ने विशेष योग दिया। आप केवल सफल साहित्यकार ही . नहीं थे; बल्कि आन्दोलन-कर्ता “एजीटेटर” भी थे। श्रतएव अापकी स्थापित की हुई कई सस्थाओं की हलचल तथा आपके रचे हुए नाटकों के अभिनय से भी इनकी शैली हिन्दी जनता के अन्दर घर कर गेई । भारतेन्दु जी की व्यापक गद्य-शैली वास्तव में उस समय एक नवीन वस्तु मालूम हुई । उनके समय में गद्य में जो अनिश्चितता उत्पन्न हो रही थी, उसे निश्चित मार्ग पर लाकर उन्होंने हिन्दी को उन्नति की ओर अग्रसर किया। इन्होने साहित्य के विविध अंगों पर विपुल ग्रन्थ-रचना करके हिन्दी भाषा को सम्पत्तिशाली बनाने का खूब प्रयत्न किया । इसीलिए भारतेन्दु जी अाधुनिक भाषा और , साहित्य के जन्मदाता माने जाते हैं ।
पंडित बालकृष्ण भट्ट प० वालकृष्ण भट्ट की गद्य-शैली में कई, विशेषतायें पाई जाती हैं