Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 13
________________ ( viii ) का पद्यांक १७३ भी गुप्त के संस्करण में 'बात' रूप में है। प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २०४ के बाद २१० तक का पाठ गुप्त के संस्करण में 'बात' के रूप में है। वे कुछ पद्य नीचे टिप्पणी में दिये हुए हैं । पद्यांक २१२ वां भी गद्य में ही समाविष्ट है और वात और वनिका के गद्य में भी काफी अन्तर है। प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २२३ में कुछेक पाठ त्रुटित हैं। वह गुप्त के संस्करण में इस प्रकार छपा है-गढ़ कोट राज सव राषिये, साहि सू जंग न कीजिये । इती अरज सुनि प्राप, सीष मुझि दीजिये ।।११।। प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २८३ के बाद जो ६ पंक्तियों में एक पंक्ति त्रुटित छपी है। वे ६ पंक्तियां डॉ० गुप्त के संस्करण के अनुसार इस प्रकार है । जब समझे किन साहि, अवै स्यानप कहा लावै । गिर धरती असमान, सदा कोउ थिर न रहावै । पाष पांच दस द्योस विचि, अदलि पहोंची पाय । वेर वेर पतसाहि तुम, वचन उचारो काहि ।।२३६।। होतिव मिटै न साहि अव, कोटि सियानप होय । अनहोनी होनी नही, होतिव होय सु होय ॥२३७।। उपरोक्त थोड़े से उदाहरणों व उद्धरणों से पाठक यह भली-भांति जान सकेंगे कि प्राप्त प्रतियों में पाठ-भेद कितना अधिक है। डा० गुप्त ने अपने संस्करण में मूल पाठ से पहले भूमिका में "१. हम्मीर विषयक साहित्य २. हम्मीर रासो की कथा ३. हम्मीर रासो का सम्पादन" सम्बन्धी अच्छा प्रकाश डाला है। उनके सम्पादित इस संस्करण की प्रति श्री काशीराम शर्मा ने मुझे भेजकर सुलभ कर दी इसके लिए मैं श्री शर्मा का बहुत आभारी हूं। ___ रासो' के रचयिता कवि महेश ने अपना कुछ भी परिचय व रचनाकाल व स्थान आदि सम्बन्धी जानकारी अपने 'रासो' में नहीं दी। और न कहीं किसी अन्य स्रोत से ही वह जानकारी प्राप्त हो सकी। पर 'रासो' का रचनाकाल तो १८ वीं शताब्दी निश्चित है। "महेश" नाम के कुछ अन्य कवि भी हो गये हैं, पर कवि की अन्य रचना कोई हो तो भी स्पष्ट उल्लेख के बिना निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रस्तुत छोटे से काव्य के प्रकाशन में कई कारणों से कई वर्ष लग गये अब यह राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान से प्रकाशित हो रहा है। इसके लिए संस्था के अन्य अधिकारियों ने जो प्रुफ-संशोधन आदि कार्यों के लिए सहयोग दिया है, उसके लिए मैं अपना आभार प्रदर्शित करता हूं। कुछ मुद्रण की अशुद्धियां रह गई है। प्रस्तावना विस्तृत रूप से लिखने का विचार था, पर कई कारणों से वैसा नहीं हो पाया इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। -अगरचन्द नाहटा बीकानेर (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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